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लइ अंज्जि विण लहइ काललद्धि गउ चक्कवट्टि सहेिलणासु अत्थाणि परिट्टिउ छुडु जिजाम आयाई भणतई जीर्ये देव दे देहि र आसु किं पि मंदर महिर जेवेड्डु जंपि तं णिणिव सक्समाणएण आएसहु कारणु किं पि णत्थि अहुं महु रिद्धिहि फलाई
महापुराण
जाणिव देवें कय गमण सिद्धि । णं इंदिंदिरु कमलिणिवणासु । सहसाई सट्ठि तणुरुहहं ताम | पाहुं तुहारी पायसेव । सरहुँ महारिणि पर्यं पि । लीलाइ समाणहुं कज्जु तं पि । विहसे पिणु वुत्तरं राणएण । आरुहिवि तुरंगम मत्तहत्थि । मा जंप वयणई चप्फलाई । मंडलाई धणरिद्धइं ॥ महु एकें मुके चक्के सुट् ठु दुसज्झई सिद्धई ॥१०॥
घत्ता - किं वग्गह पेसणु मग्गह
अह जइ सुत्तु दक्खविडं अज्जु देवेण जाई चसरेण लंबियघंटाचामरधयाहूं वरसिहरहं चवीसह वि ताह जिह णासइ खलमाणवहं मग्गु
[ ३९.१०.३
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तो करह महारउ धम्मकज्जु । कारावियाई भरहेस रेण । केलासु गंपि कंचणमयाहं । परिरक्ख पजह जिणहराहं । तिह विरयह तरुसिलसलिलदुग्गु ।
वह देवमुति यह कहता है, फिर भी वह पृथ्वीनाथ सगर प्रतिबुद्ध नहीं हुआ । लो वह आज भी काललब्धि नहीं पाता। यह जानकर उस देवने गमनसिद्धि की ( अर्थात् वह वहाँसे चला गया ) 1 राजा सगर अपने निवासके लिए चला गया, मानो भ्रमर अपने कमलिनी - निवास के लिए चल दिया हो । जैसे ही वह अपने दरबार में बैठा, वैसे ही उसने अपने साठ हजार पुत्रोंको देखा । आते हुए उन्होंने कहा - "हे देव ! आपकी जय हो, हम आपके चरणोंकी सेवा प्रकट करते हैं । आप शीघ्र हो कोई आदेश दीजिए, यदि युद्ध में सुमेरुपर्वतके बराबर भी शत्रु होगा, तो भी हम अपना पैर नहीं हटायेंगे ? इस कार्यको भी खेल-खेल में सम्मानित करेंगे ।" यह सुनकर इन्द्र के समान हँसते हुए राजा सगर ने कहा, "आदेश देनेके लिए कोई कारण नहीं है ? तुम लोग अश्वों और मतवाले हाथियोंपर चढ़कर मेरे वैभव के फलोंको चखो । चंचल वचनोंका प्रयोग मत करो। "
घत्ता-"क्यों सनकते हो और आज्ञा मांगते हो। मेरे द्वारा मुक्त एक चक्रसे ही दुःसाध्य और धन-सम्पन्न मण्डल अच्छी तरह जीत लिये गये ॥ १०॥
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अथवा यदि तुम्हें आज अपना सुपुत्रत्व दिखाना है, तो हमारा एक धर्मकार्यं करो । चक्रवर्ती राजा भरतेश्वरने जिनमन्दिरोंका जो निर्माण करवाया था, तुम केलास पर्वत जाकर, जिनमें घण्टा, चमर और ध्वज अवलम्बित हैं ऐसे स्वर्णमय और श्रेष्ठ शिखरवाले चौबीसों जिनमन्दिरोंकी परिरक्षा करो। तुम वृक्षों, चट्टानों और जलोंका दुर्ग बनाओ जिससे दुष्ट मनुष्यों का
२. A P अज्ज वि । ३. P कय देव जाणसिद्धि । ४. AP जोव । ५. AP जेवड्ड । ६. P तं सुणिवि । ७. P उत्तउ । ८. P लग्गह ।
१९. १. A संयत्त । २. AP दक्खवहु । ३. A वर रक्ख । ४ A जिम ।
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