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[ ३९. १२. १०
महापुराण घत्ता-धवलंगइ वेढिउ गंगइ पुणु वि' मज्झु सो''भावइ ।।
सुरमणहरु मंदरमहिहरु तारापंतिइ णावइ ॥१२।।
फणिभवणि विलग्गउ दंडरयणु तहु सर्वे कंपिउ सयलु मुवणु । भयथरहरंत कुंडलिय णाय
वणि वणयरेहिं पविमकणाय । झलझलिये जलहि द्वैलढलिय धरणि विम्हिउँ सुरिंदु कंपविउ तरणि । पडिबोहणकारणु मुणिउं तेण मणिकेउणा हि पवरामरेण । फैणिमणिपहपिहियदिणाहिवेण होइवि मायाणायाहि वेण । तिहुयणजणमरणुप्पायजेहिं
गुंजारुणदारुणलोयणेहिं । जोइवि कुमार कय भूईरासि णं पुंजिय ससंविभूइरासि । तहिं कासु वि ण हवइ पलयकालु दरिसाविउ देव इंदजाल ।
'अमुयाई वि मुयाई व दिट्ठ बंधु गय भीम भईरहि पुरु सचिंधु । १० ' उव्वरिय कह व ते विहिवसेण घरु पत्ता मुक्का पोरिसेण ।
धत्ता-घरु गंपिणु पिउ पणवेप्पिणु आसणेसु आसीणा ।
___ सविसाएं विण्णि वि ताएं दिट्ठ सुठ्ठ विहाणा ॥१३॥ घत्ता-गोरे अंगोंवाली गंगानदीके द्वारा घेरा गया कैलास पर्वत मुझे ऐसा लगता है मानो देवसुन्दर मन्दराचल तारापंक्तियोंसे घिरा हुआ हो ।।१२।।
वह दण्डरत्न नागभवनसे जा लगा। उसके शब्दसे सारा विश्व कांप उठा, कुण्डलाकार नाग भयसे कांप उठे, वनमें वनचरोंने शब्द करना शुरू कर दिया, समुद्र झलझला उठा, देवेन्द्र विस्मित हो उठा । सूर्य कांप गया। उस मणिकेतु प्रवर देवने इसे प्रतिबोधनका कारण समझा। जिसने अपने फणमणिको प्रभासे दिनाधिप (सूर्य) को ढंक लिया है, ऐसा मायावी नागराज बनकर, उस देवने, त्रिभुवनके लोगोंको मृत्यु उत्पन्न करनेवाले, गुंजाफलके समान लाल और भयंकर नेत्रोंसे कुमारोंको देखकर राखका ढेर बना दिया, ( उन्हें भस्म कर दिया ) मानो उसने अपने यशकी विभूतिराशि एकत्रित कर लो हो। उसमें किसीके लिए भी प्रलयकाल नहीं हुआ। क्योंकि देवने अपने इन्द्रजालका प्रदर्शन किया था। बिना मरे हुए भी भाई मरे हुए दिखाई दिये । तब भीम और भगीरथ अपने-अपने ध्वजचिह्नोंके साथ गये। भाग्यके पथसे वे दोनों किसी प्रकार बच गये थे। अपने पौरुषसे रहित वे घर पहुंचे।
घत्ता-घर जाकर, अपने पिताको प्रणाम कर वे आसनोंपर बैठ गये । विषादपूर्वक पिताने देखा कि वे दोनों ही अत्यन्त दुःखी हैं ॥१३॥
१०. A मज्झि । ११. P भाइ । १३.१. A थरहरंति । २. A झलझलिउ। ३. A टलटलिय। ४. AP विभिउ । ५. AP पियउ ।
६. A पडिवोहणु । ७. A P वि । ८. P फणमणि । ९. A भूय । १०. P सज्जसविहूई। ११. A कासु ण हयउ । १२. AP अमुया वि । १३. A P पुरि । १४. A उव्वरिय ते ण कह विहिवसेण ।
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