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--३९. १४. १३ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
ककेयणकिरणुब्भासणाह
जोयवि सहसहं सुण्णासणाहं । बिहिं ऊणी सहि दुसंठिएण सुयदसणसोक्खुकंठिएण। मणिमयकुंडलचेचइयगंडु
राएण पैलोइउं मंतितोंडु । दुइ आया इयर ण पइसरंति भणु कारणु तणुरुह किं करंति । पुत्वं चिय सुरसंकेइएण
संबोहणबुद्धिविराइएण। तं णिसुणिवि मंतिं वुत्त तेण हे महिवइ महिलाहिययथेण । अस्थमैइ ण किं रवि उययभाउ उल्हाइ ण किं पज्जलिउ दीउ । ण वि णासइ किं तडि मेहसोह फुटुंति ण किं जलबुब्बुओह । थिरु होइ ण संझारायरंगु
गउ आवइ णउ सरिसरतरंगु । विहडइ ण काई सुरचावदंडु किं खयहु ण वञ्चइ मणुयपिंडु। कालेण गिलियं देविंद देव पच्छण्णपउत्तिहिं कहिउ एम्व । घत्ता-ता रायहु वड्ढियसोयहु बाहजलहइं णेत्तई ॥
चलपत्तइं ओसासित्तइं णं गलंति सयवत्तई ॥१४॥
कर्केतन रत्नोंकी किरणोंसे आलोकित हजारों सूने आसनोंको देखकर भाग्यसे साठको संख्या नष्ट हो जानेसे व्याकुल चित्त, और पुत्रदर्शनके सुखके लिए उत्कण्ठित राजाने, मणिकुण्डलोंसे अलंकृत गालवाले मन्त्रीमुखकी ओर देखा ( और कहा ) कि दो ही पुत्र आये हैं, दूसरे नहीं आये हैं। कारण बताओ कि पुत्र क्या कर रहे हैं ? तब पहलेके देव ( मणिकेतु) के द्वारा पहलेसे समझाये गये और राजाको सम्बोधन देनेकी बुद्धिसे शोभित मन्त्रीने कहा-“हे महिलाओंके स्तनको चुरानेवाले राजन्, क्या उदय होनेवाले सूर्यका अस्त नहीं होता? क्या जलाया हुआ दीप शान्त नहीं होता ? मेघोंकी शोभा बिजली क्या नष्ट नहीं होती? क्या जलके बुबुदोंका समूह नहीं फूटता ? सन्ध्यारागका रंग स्थिर नहीं होता! नदी और सरोवरकी गयी हुई लहर वापस नहीं आती! क्या इन्द्रधनुष नष्ट नहीं होता? क्या मनुष्य शरीर विनाशके मार्गपर नहीं जाता? देवेन्द्र और देव महाकालके द्वारा निगल लिये जाते हैं ?" इस प्रकार प्रच्छन्न उक्तियोंसे मन्त्रीने कहा।
पत्ता-तब जिसका शोक बढ़ गया है, ऐसे राजाके अश्रुजलसे गीले नेत्र इस प्रकार गल गये मानो ओससे गीले चंचल पत्तोंवाले कमल हों॥१४॥
१४.१. A जोइवि सहास सुण्णा; P अवलोइवि सुयसुण्णा । २. A°सुक्खुक्कंठिएण; P°मोहुक्कंटिएण ।
३. A पलोयउ: P पलोविउ । ४. A ते महिवइ महिलहियय: Pहे महिवइ महिलहियथेण ५. A अत्थवइ । ६. P उयणभाउ । ७. A जलपुवओह but gloss जलबुद्बुद । ८. A गलिय । ९. A पच्छण्णयउत्तिहि ।
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