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- ३९.१०.२ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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सो सुद्धबुद्धि जा तच्चु मुणइ । तं तणुबलु जं वयभारु वहइ । ते कम जे मउयडं संचरंति । तं तोंडु णं जं विप्पियैई चवइ । ते सवण ण जे रइसुइ सुणंति । तं हियउ ण जं परमत्थि चलइ । तं कुणजं इच्छइ सुगंधु । सो मित्तु समउं जो रण्णि वसइ । उप्पाडिय जे मुणिवरकरेहिं । लग्गाइ विलासिणिथणि ण जाई । तं जीविउ जं चारित्तसहिउ । गुणभायणु तं माणुसु सुकुलीणउ ॥ मण्णविं घणु जं तव चरणें खीणउ ||९||
सो सूरउ जो इंदियई जिणइ सोइ बंधु जो धम्मु कहइ ते कर जे पडिलिहणेडं धरंति तं सिरु जं जिणपयजुयलि णवइ ते चक्खुण जे तियमइ नियंति सा जीह ण जा रसलोल लुलइ सुंकारु देतु जिंदइ दुगंधु तं अंगुणजं कुसयणहु तसइ ते चार केस संजमधरेहिं सँकत्थई जईकररुहई ताई उज्झउ कामाउरु सीलर हिउ घत्ता - उज्जेयमणु जं तं जणु ह
आवेहि जाहुं लइ तुहुं वि दिक्ख इय कहइ जइ विसो देवसाहु
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सिक्ख हि गयमयरय मोक्खसिक्ख । पडिबुद्ध तो विण पुविणाहु |
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शूर वही है जो इन्द्रियोंको जीतता है, वही सद्बुद्धिवाला है जो तत्वका विचार करता है । वही इष्ट बन्धु है कि जो धर्मका कथन करता है । वही शरीरबल है जो व्रतभारको धारण करता है । वे ही हाथ हैं जो मयूरपिच्छ धारण करते हैं । वे ही चरण हैं जो मृदुता से चलते हैं, वही सिर हैं जो जिनपद युगलमें नमन करते हैं, वही मुख है जो बुरा नहीं बोलता । वे ही आँखें हैं जो स्त्रियों को नहीं देखतीं । वे ही कान हैं जो रतिसुखको नहीं सुनते । जीभ वही है जो रसकी लम्पटता में नहीं पड़ती है । हृदय वही है जो परमार्थ से नहीं चलता । नाक वही है जो सुंकार करते हुए न तो दुर्गंधको निन्दा करती है और न सुगन्धकी इच्छा करती है ? शरीर वह है जो कुश पर सोने से पीड़ित नहीं होता । वही मित्र है जो जंगलमें साथ रहता है । सुन्दर केश वही हैं, जो संयमधारण करनेवाले मुनिवरोंके द्वारा उखाड़े जाते हैं । मुनिके वे ही हाथ कृतार्थ हैं जो विलासिनियों के स्तनोंसे नही लगे । कामातुर और शील रहित जीवन में आग लगे । वही जीवन है जो चारित्र्य सहित हो ।
मनुष्य कुलीन है । उसी योवनको
घत्ता - जो सरलमन और गुणोंका भाजन है, वही मैं मानता हूँ जो तपश्चरणके द्वारा क्षीण है ||९||
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"आओ, चलें, तुम भी दोक्षा ले लो । मदरजसे रहित मोक्षको शिक्षा सोख लो ।" यद्यपि ९. १. A सो सुद्धबुद्धि जो । २ AP पडिलेन धरति । ३. A जंण । ४.AP विपियउ । ५. AP णक्कु । ६. A गुगंधु । ७. P सकइत्थई । ८. AP जणं । ९. A उज्जुयमणु । १० AP मण्णमि । १०. १. A पुरणाह ।
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