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संधि ३९
गुणगणहरु भासइ गणहरु बहुरसमावणिरंतर ॥ मगहाहिव णिसुणि महाहिव सयरणरिंदकहंतर ॥ध्र वकं ।
इह जंबुदीवि खरयरकराहि सीयहि दाहिणेयलि संणिसण्णु णं धरणिइ दाविउ सुहपएसु मायंदणवदलुक्कंठियाउ कमलायर धरियसुपुंडरीय उववणई विविहवच्छंकियाई
मंदरगिरिपुस्विल्लइ विदेहि । उद्दामगामसीमापउण्णु । वच्छावइ णामें अस्थि देसु । जहिं कलयलंति कलयंठियाउ। णं णरवइ धरियसुपंडरीय । गोउलई धवलवच्छंकियाई ।
सन्धि ३९ गुणोंके समूहको धारण करनेवाले गौतम गणधर कहते हैं-"हे महाधिप मगधराज, अनेक रसभावोंसे परिपूर्ण राजा सगरका कथान्तर सुनो।"
सूर्यके तेजसे युक्त इस जम्बूद्वीपमें मन्दराचलके पूर्व विदेहमें सीता नदोके दक्षिण तटपर स्थित वत्सावती नामका देश है । उत्कट ग्रामों और सीमाओंसे परिपूर्ण जो मानो धरतीके द्वारा सुप्रदेशके रूपमें दिखाया गया हो। जहां आम्रवृक्षोंके नवदलोंके लिए उत्कण्ठित कोयले कलकल ध्वनि करती हैं, कमलोंको धारण करनेवाले सरोवर ऐसे हैं मानो राजाने सुपुण्डरीक ( छत्र और कमल ) धारण कर रखा हो । जहां विविध वृक्षोंसे अंकित उपवन हैं, और धवल बछड़ोंसे अंकित
Mss. A and P have the following stanza at the beginning of this Samdhi :
शशधरबिम्बात्कान्ति (न्ति ?) स्तेजस्तपनाद्गभीरतामुदधेः ।
इति गणसमुच्चयेन प्रायो भरतः कृतो विधिना ॥१॥ This stanza is also found at the beginning of Samdhi XVIII of this Work in certain Mss. of the Mahāpurāņa. For details see Introduction to Vol. I. pp. xvi-xxvii and also foot-note on page 295 of the same Vol. K does not give it there or here. १. १. A P महाणिव । २. A उत्तरयलि; K उत्तरयलि but corrects it to दाहिणयलि । ३. A
कलियंठियाउ ।
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