Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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प्रस्तावना
श्रुतावतारोंके रचयिता आचार्य इन्द्रनन्दि और विबुध श्रीधरको भी ऐसा हो अभिप्राय है।
जयधवलामें जो चूर्णिसूत्र हैं उनमें न तो कहीं कषायप्राभृतके कर्ताका नाम आता है और न चूर्णिसूत्रोंके कर्ताका ही नाम आता है। किन्तु त्रिलोकप्रज्ञप्तिके अन्तमें दो गाथाएं इस प्रकार पाई जाती हैं
"पणमह जिणवरवसहं गणहरवसहं तहेव गुणवसहं । बठूण परिसवसह जदिवसहं धम्मसुत्तपाढरबस (वसह) ॥८॥ चुण्णिसरूवत्थं करणसरूवपमाण होइ कि जत्तं ।
अट्ठसहस्सपमाणं तिलोयपण्णत्तिणामाए ॥८॥" पहली गाथामें ग्रन्थकारने श्लेषरूपमें अपना नाम दिया है और अपने नामके अन्तमें वसहवृषभ शब्द होनेसे उसका अनुप्रास मिलानेके लिये द्वितीयाविभक्त्यन्त सब शब्दोंके अन्तमें वसह पदको स्थान दिया है। जिनवरवृषभ और गणधरवृषभका अर्थ तो स्पष्ट ही है। क्योंकि वृषभनाथ प्रथम तीर्थङ्कर थे और उनके प्रथम गणधरका नाम भी वृषभ ही था। किन्तु 'गुणवसह' पद स्पष्ट नहीं है, यों तो 'गुणवसह' को 'गणंहरवसह'का विशेषण किया जा सकता था, किन्तु यही गाथा जयधवलाके सम्यक्त्व अनुयोगद्वारके प्रारम्भमें मङ्गलाचरणके रूपमें पाई जाती है और इससे उसमें कुछ अन्तर है। गाथा इस प्रकार है
"पणमह जिणवरवसहं गणहरवसहं तहेव गुणहरवसहं ।
दुसहपरीसहविसहं जइवसहं धम्मसुत्तपाढरवसहं ॥" ___ यहां 'गुणवसह' के स्थानमें 'गुणहरवसह' पाठ पाया जाता है। जो गुणधराचार्यका बोध कराता है। अतः यदि ‘गुणवसहं ' का मतलब गुणधराचाचार्यसे है तो स्पष्ट है कि यतिवृषभने कषायप्राभृतके कतों गुणधराचार्यका उल्लेख किया है। और इस प्रकार उनके मतसे भी इस बातकी पुष्टि होती है कि कषायप्राभृतके कर्ताका नाम गुणधर था। क्योंकि किसी दूसरे गुणधराचार्यका तो कोई अस्तित्व पाया ही नहीं जाता है, और यदि हो भी तो उनको स्मरण करनेका उन्हें प्रयोजन भी क्या था ? दूसरी गाथाका पहला पाद यद्यपि सदोष प्रतीत होता है फिर भी किसी किसी प्रतिमें 'त्थं करण के स्थानमें 'छक्करण' पाठ भी पाया जाता है ।
और इस परसे यह अर्थ किया जाता है कि चूर्णिस्वरूप (?) और छक्करण स्वरूप ग्रन्थोंका जितना प्रमाण है उतना ही अर्थात् आठ हजार श्लोक प्रमाण त्रिलोकप्रज्ञप्तिका है। यहां 'चूर्णि' पदसे ग्रन्थकार सम्भवतः कषायप्राभृत पर रचे गये अपने चूर्णिसूत्रोंका उल्लेख करते हैं। अतः इससे प्रमाणित होता है कि त्रिलोकप्रज्ञप्तिके रचयिता आचार्य यतिवृषभ ही चूर्णिसूत्रोंके भी रचयिता हैं।
___ कसायप्राभृतकी कुल गाथाएं २३१ हैं, यह हम पहले लिख आये हैं, किन्तु दूसरी गाथा कसायपाहुडकी ‘गाहासदे असीदे' के आदिमें ग्रन्थकारने १८० गाथाओंके ही रचनेकी प्रतिज्ञा की है। गाथाओंकी इसपर कुछ आचार्योंका मत है कि १८० गाथाओंके सिवाय १२ सम्बन्धगाथाएं, कर्तृकतामें ६ श्रद्धापरिमाणनिर्देशसे सम्बन्ध रखनेवाली गाथाएं, और ३५ संक्रमसम्बन्धी गाथाएं मतभेद नागहस्ति आचार्यकी बनाई हुई हैं। इसलिये 'गाहासदे असीदे' आदि जो प्रतिज्ञा
(२) तत्त्वानु० पृ० ८६, श्लो० १५०-१५३। (२) सिद्धान्तसा० पु० ३१७। (३) जै० सा०३० प०६।४) "असीदिसदगाहाओ मोत्तण अवसेससंबंधद्धापरिमाणणिद्देससंकमणगाहाम्रोजेण णागहत्थिआइरियकयाम्रो तेण 'गाहासदे असीदे' ति भणिदूण णागहत्थिाइरिएण पइज्जा कदा इदि के वि वक्खाणाइरिया भणंति. तण्ण घडदे, संबंधगाहाहि अद्धापरिमाणणिद्देसगाहाहि संकमगाहाहि य विणा असीदिसदगाहाम्रो चेव भणंतस्स गुणाहरभडारयस्य अयाणत्तप्पसंगादो। तम्हा पुव्वुत्तत्थो चेव घेतव्वो।"पु०१८३ ।
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