Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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परिसिहाणि ८. जयधवलागतविशेषशब्दसूची
(णाण)
३३०
२११
२१३
१०२
६८
श्र अकम्मबंध अवान (णाण)
उस्सप्पिणी ७४,१२५ अकम्मोद १८८ अशुद्धद्रव्यार्थिक
ऋ ऋजुसूत्र
२३२ अकिरियावाद १३४ असुत्तगाहा १६८ ए एकत्ववितीवीचार ३४४ अग्गेणिय ९५,१४०,१५७ असंखेज्ज
एकान्त
२०७ अघाइचउक्क
६८ असंखेज्जदिभाग ३९८,४००, एवकार
३०७ अच्चासण १११
४०१,४०२ एवम्भूतनय २४२ अजीव अहिंसप १०३, १०६ ओ प्रोग्गहणाण
३३२ अट्ठभंग ३७०,३७१,३७२, अहिंसकत्त
ओघ ३८०, ३८१, ३८२, अहिंसा १०३
३८३,३९२,४०६,४०७ अट्ठासव
अहोरत्त
४०७ ओदइय अद्वैग आउन्वेय १४७ आ आउअ
ओवट्टण
३४७ अठंगमहाणिमित्त १४५ आचार (अंग) १०,९३.१२२ प्रोलंगदाण
१०८ अणादियसिद्धंतपद ३५,३७ आणुपुव्वी २८,२९ प्रोसप्पिणी ७४,१२५ अणायार ३३१,३३८
आणंदमेत्तिपाहुड ३२५ अं अंग अणियोगद्दार २७,१५१ आदपवाद ९५,१४१,१५० अंगपविठ २६,१४९ अणत्तरोववादियदसा ९४, आदाणपद ३२,३३,३४,३५ अंगबाहिर २५,९१
१३० आदेस ३८०,३८१,३८२, अंगुठ्ठपसेणा अणुमाण ३४१
३८९,४०६,४०८ अंतयडदसा ९४,१३० अणंगपविठ्ठ १४९ आदेसकसाअ २८४,३०१ अंतराणुगम ३८९,४०६ अणंत
आयार ३३१,३३८ अंतोमुहुत्त ३८८,४०५ अण्णाणवाद १३४ आयासगया ९५,१३९ क कप्पववहार
१२० अत्थपद ६१,१५२ आवरण
कप्पाकप्पिय १२१ अत्थाहियार १५१ आवलिअ १२५,३३० कम्म ५६,५७,५९ अत्थिणत्थिपवाद .९५,१४०, आसंकासुत्त
३८४ कम्मपवाद ९५,१४२,१५० १५० इ इरियावहपडिक्कमण
कम्मपेज्ज
२७१ प्रधम्म ३७० ई ईहा
कम्मबंध
१८७ अनेकान्त २०७ उ उक्कड्डणा.
कम्मोदन
१८८ अन्तरङ्गनय
१२५ कलहपाहुड
३२५ अप्पाबहुप्राणुगम ४०७ उत्तमट्ठाणपडिक्कमण ११३,
कल्लाणपुव्व ९६,१४५,१५० अभंतर (पच्चय) २८४
११४
कसाय अभिवाहरण १९८
उत्तरज्झेण
१२० कसायपाहुड ४,११,२९,३०, अयण
१२५ उत्पाद
१८८
३६,८७,९६,१४८,१५१, अरहा ३५७ उदम १८८,२६१
१९९,२५७,३२७ परहंतणमोक्कार
उदीरणा . १८८ कसायसामण्ण अर्थ
२२ उप्पायपुव्व ९५,१३९,१५० काल अर्थनय २२२,२२३,२७९ उवक्कम
कालपमाण प्रवचयपद ३३,३४ उवचयपद ३३,३४ कालसमवाप्र अवधि उवसम
कालसामाइय अवधिज्ञान १६,१७,४३ उवसामअ ३४७,३६२ कालसंजोयपद अवयव उवसातसांपराइअ ३४५ कालाणुगम
४०४ अवयवपद ३४ उवसंहारगाहा
किदियम्म
११८ अवयवी उवासयज्झयण ९४,१२९ ! किरियावाद
१३४ (१) यहां ऐसे शब्दोंका ही संग्रह किया है जिनके विषयमें ग्रन्थमें कुछ कहा है या जो संग्रहकी दृष्टिसे
आवश्यक समझे गये। चौदह मार्गणाओं या उनके अवान्तर भेदोंके नाम अनयोगद्वारोंमें पूनः पूनः आये हैं, अत: यहां उनका संग्रह नहीं किया है। जिस पृष्ठ पर जिस शब्दका लक्षण, परिभाषा या व्युत्पत्ति पाई जाती है उस पृष्ठके अंकको बड़े टाईपमें दिया है।
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