________________
गा० १३-१४] णयपरूवणं .
२१७ ___१८१. परि-भेदं ऋजुसूत्रवचनविच्छेदं एति गच्छतीति पर्यायः, स पर्यायः अर्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायार्थिकः । सादृश्यलक्षणसामान्येन भिन्नमभिन्नं च द्रव्यार्थिकाशेषविषयं ऋजुसूत्रवचनविच्छेदेन पाटयन् पर्यायार्थिक इत्यवगन्तव्यः । अत्रोपयोउत्पत्ति माननेमें विरोध आता है। जैसे गधेके सींग सर्वथा असत् हैं अतः वे उत्पन्न नहीं होते हैं। तथा यदि पर्याय सर्वथा असत् है तो प्रतिनियत कार्य के लिये प्रतिनियत उपादान कारणका ग्रहण करना आवश्यक नहीं होगा, क्योंकि जैसे धान्यके बीजोंमें धान्यरूप पर्यायका अभाव है वैसे ही कोदोंके बीजोंमें भी धान्यरूप पर्यायका अभाव है। अत: धान्यका इच्छुक पुरुष धान्य उत्पन्न करनेके लिये कोदोंके बीज भी बो सकता है, किन्तु ऐसा नहीं देखा जाता है। अतः धान्यरूप बीजमें धान्यफलरूप पर्याय कथंचित् सत् है यह सिद्ध होता है। तथा यदि पर्याय सर्वथा असत् है तो सब कारणोंसे सब कार्योंकी उत्पत्ति हो जानी चाहिये । किन्तु ऐसा नहीं देखा जाता है, क्योंकि प्रतिनियत कारणसे प्रतिनियत कार्यकी ही उत्पत्ति देखी जाती है। अतः पर्याय कथंचित् सत् सिद्ध होती है। तथा समर्थ कारण भी उसी पर्यायको कर सकते हैं जिसका करना शक्य होता है। किन्तु जो असत् है उसका करना शक्य नहीं है, जैसे कि खरविषाणका । अतः पर्यायको कथंचित् सत् मानना चाहिये । तथा प्रत्येक पर्यायका कोई न कोई कारण होता है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि पर्याय द्रव्यसे कथंचित् अभिन्न और कथंचित् सत् रूप है । तथा ऐसी पर्यायोंका व्यक्त हो जाना ही उत्पाद है और तिरोभाव ही विनाश है। अतः वस्तु नित्य है । तथा तद्भावसामान्य अर्थात् एक ही द्रव्यकी पूर्वोत्तर पर्यायों में रहनेवाले ऊर्ध्वता सामान्यकी अपेक्षा अभिन्न है और सादृश्यलक्षण सामान्यकी अपेक्षा भिन्न और अभिन्न है। ऐसी नित्य वस्तु द्रव्यार्थिकनयका विषय जाननी चाहिये ।
६१८१. पर्यायमें परि उपसर्गका अर्थ भेद है और उससे ऋजुसूत्रवचन अर्थात् वर्तमान वचनका विच्छेद जिस कालमें होता है वह काल लिया गया है। अर्थात् ऋजुसूत्रका विषय वर्तमान पर्यायमात्र है और उसके वचनका विच्छेदरूप काल भी वर्तमान समयमात्र होता है। इसप्रकार जो वर्तमान काल अर्थात् एक समयको प्राप्त होती है उसे पर्याय कहते हैं। वह पर्याय ही जिस नयका प्रयोजन हो उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं। सादृश्यलक्षण सामान्यसे भिन्न और अभिन्नरूप जो द्रव्यार्थिक नयका समस्त विषय है, ऋजुसूत्र वचनके विच्छेदरूप कालके द्वारा उसका विभाग करनेवाला पर्यायार्थिक नय है यह उक्त कथनका तात्पर्य जानना चाहिये। अब द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयके विषयमें दो उपयोगी गाथाएं देते हैं
(१) “पर्यायोऽर्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायार्थिकः"-सर्वार्थसि० १।६। “परि भेदमेति गच्छतीति पर्यायः । पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायार्थिकः।"-ध० सं० पृ० ८४। “ऋजुसूत्रवचनविच्छेदो मूलाधारो येषां नयानां ते पर्यायाथिकाः। विच्छिद्यतेऽस्मिन काल इति विच्छेदः, ऋजसूत्रवचनं नाम वर्तमानवचनं
२८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org