Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पेज्जदोसविहत्ती १
३८०. परिमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण पेजदोसविहत्तिया केडिया ? अनंता । एवं तिरिक्खा, सव्वएइंदिय-वणप्फदि० णिगोद० बादर-सुहुमपञ्जत्तापञ्जत्त कायजोगि ओरालिय० ओरालिय मिस्स ० कम्मइय०णवुंस० कोहमाण- माया लोहक० मदि-सुदअण्णाणि असंजद० अचक्खुदंसण • तिण्णिलेस्सा-भवसिद्धि ० अभवसिद्धि० मिच्छादिट्टि असणि आहार- अणाहारएत्ति वत्तव्वं ।
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९३८१. आदेसेण णिरयगईए पेरइएस पेज - दोसविहत्तिया के त्तिया ? असंखेजा । एवं सत्तसु पुढवी | पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्खपजत्तापञ्जत्त- जोणिणिय- मणुस्समणुस्सअपजत्त देवा भवणवासियादि जाव अवराइदंता सव्वविगलिंदिय-पंचिदिय [ पंचिंदियपजचापजत्त] तस-तसपञ्जत्तापञ्जत्त - चत्तारिकसाय (-रिकाय) बादरसुहुम ०
१३८०. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश | उनमें से ओघनिर्देशकी अपेक्षा पेज्ज और दोषसे युक्त जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इसीप्रकार तिर्यंच सामान्य, सभी एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, निगोद जीव, बादर वनस्पतिकायिक, सूक्ष्मवनस्पतिकायिक, बादर निगोद जीव, सूक्ष्मनिगोद जीव, बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिकपर्याप्त, सूक्ष्म बनस्पतिकायिक अपर्याप्त, बादर निगोद पर्याप्त, बादर निगोद अपर्याप्त, सूक्ष्म निगोद पर्याप्त, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त, सामान्य काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कपोतलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिध्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक इनमें भी कहना चाहिये । अर्थात् उपर्युक्त स्थानोंमेंसे प्रत्येक स्थानमें पेज्जरूप और दोषरूप जीव अनन्त हैं ।
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९३८१. आदेश निर्देशकी अपेक्षा नरकगति में नारकियों में पेज्ज और दोषसे विभक्त जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसीप्रकार सातों पृथिवियों में कथन करना चाहिये । पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त तिर्यंच, योनिमती तिर्यंच, सामान्य मनुष्य, अपर्याप्त मनुष्य, भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तक प्रत्येक स्थानके देव, पर्याप्त और अपर्याप्त सभी विकलेन्द्रिय, सामान्य पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, समान्य त्रस, त्रस पर्याप्त, त्रस अपर्याप्त, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, अष्कायिक, बादर अष्कायिक, सूक्ष्म अष्कायिक, बादर अष्कायिक पर्याप्त, बादर अष्कायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अष्कायिक पर्याप्त, सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त, तेजकायिक, बादर तेजकायिक, सूक्ष्म तेजकायिक, बादर तेजकायिक पर्याप्त,
(१) केवलिया स० ।
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