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गा० २१ ] पेज्जदोसेसु बारस अणियोगद्दाराणि
३६६ ६३८४. फोसणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य। तत्थ ओघेण पेजदोसविहत्तिएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो। एवं सव्वासिमणंतरासीणं वत्तव्वं । चत्तारिकाय०बादर०तेसिमपज्जत्त-सव्वसुहुमतेसिं पज्जत्तापज्जत्तबादरवणप्फदि पत्तेय० मान क्षेत्रका विचार क्षेत्रानुयोगद्वार में किया जाता है। परन्तु यहां पर जीवोंके क्षेत्रका विचार करते समय स्वस्थानस्वस्थान आदि अवस्थाओंकी अपेक्षा उसका कथन नहीं किया है। किन्तु समस्त जीवराशिका अधिकसे अधिक वर्तमान क्षेत्र कितना है और मार्गणाविशेषकी अपेक्षा उस उस मार्गणामें स्थित जीवराशिका अधिकसे अधिक वर्तमान क्षेत्र कितना है इसका ही प्रकृत अनुयोगद्वारमें कथन किया है जो ऊपर बतलाया ही है । यद्यपि यह उत्कृष्ट क्षेत्र किसी अवस्थाविशेषकी अपेक्षा ही घटित होगा पर यहां इसकी विवक्षा नहीं की गई है। अब यदि अवस्थाओंकी अपेक्षा जीवोंके वर्तमान क्षेत्रका विचार करें तो वह इसप्रकार प्राप्त होता है। प्रकृतमें पेज्ज और दोषका अधिकार है अतः पेज्ज और दोषके साथ केवलिसमुद्बात नहीं पाया जाता, क्योंकि वह क्षीणपेज्जदोषवाले जीवके ही होता है, शेष नौ अवस्थाएं पाई जाती हैं। अतः ओघकी अपेक्षा इन नौ अवस्थाओंमेंसे स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्भात और उपपादकी अपेक्षा पेज्जवाले और दोषवाले जीवोंका वर्तमान क्षेत्र सर्व लोक है तथा शेष चार अवस्थाओंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग वर्तमान क्षेत्र है। इसीप्रकार जिन जिन मार्गणाओंमें अनन्त जीव बताये हैं उनका तथा पृथिवीकायिक आदि ऊपर कही हुई कुछ असंख्यात संख्यावाली राशियोंका वर्तमान क्षेत्र भी सर्वलोक होता है। परन्तु यह सर्वलोक क्षेत्र उन उन मार्गणाओंमें संभव सभी अवस्थाओंकी अपेक्षा न हो कर कुछ अवस्थाओंकी अपेक्षा ही होता है, क्योंकि कुछ अवस्थाओंकी अपेक्षा वर्तमान क्षेत्र लोकका असंख्यातवां भाग ही है। इनके अतिरिक्त संख्यात और असंख्यात संख्यावाली शेष सभी मार्गणाओंमें पेज्जवाले और दोषवाले जीवोंका वहां संभव सभी अवस्थाओंकी अपेक्षा वर्तमान क्षेत्र लोकका असंख्यातवां भाग है। केवल स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात, मारणान्तिक समुद्धात और उपपादकी अपेक्षा वायुकायिक पर्याप्त जीव इसके अपवाद हैं। क्योंकि इन अवस्थाओंकी अपेक्षा उनका वर्तमान क्षेत्र लोकका संख्यातवां भाग है।
इस प्रकार क्षेत्रानुयोगद्वार समाप्त हुआ।
६३८४.स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा पेज्जवाले और दोषवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? समस्त लोकका स्पर्श किया है। ऊपर जिन अनन्त राशियोंका समस्त लोक क्षेत्र कह आये हैं उन सबका स्पर्शन भी ओघप्ररूपणाके समान सर्व लोक कहना चाहिये । पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंका, बादर पृथिवीकायिक,
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