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गा० २१ ] पेज्जदोसेसु बारस अणिोगहाराणि
६३८७. पंचिंदिय-तसपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अट चोदसभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा। एवं पंचमणजोगि-पंचवचिजोगिइत्थि-पुरिसवेद-विभंगणाणि-चक्खुदंसण-सण्णि त्ति वत्तव्वं । ____ १३८८. वेउव्वियकायजोगीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेजदिभागो, अह तेरस चोदसभागा वा देसूणा । तिरिक्ख-मणुससंबंधिवेउव्वियमेत्थ ण गहिदं । तं कधं णव्वदे ? सव्वलोगो त्ति णिदेसाभावादो।
३८७. पंचेन्द्रियपर्याप्त और त्रस पर्याप्त जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसीप्रकार पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंका स्पर्श कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-उक्त जीवोंका सर्वत्र वर्तमानकालीन स्पर्श लोकका असंख्यातवां भाग है। तथा कुछ ऐसी अवस्थाएं हैं जिनकी अपेक्षा अतीत कालीन स्पर्श लोकका असंख्यातवां भाग है पर उसके यहां कहनेकी विवक्षा नहीं की या 'वा' शब्दके द्वारा उसका समुच्चय कर लिया है । मारणान्तिक और उपपादपद परिणत उक्त जीव ही सनालीके बाहर पाये जाते हैं इस बात का ज्ञान करानेके लिये उक्त जीवोंका अतीतकालीन स्पर्श दो प्रकारसे कहा है ।
३८८. वैक्रिथिककाययोगी जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और तेरह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। यहां पर तिर्यंच और मनुष्यसम्बन्धी वैक्रियिकका ग्रहण नहीं किया है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-क्योंकि यहां पर वैक्रियिककाययोगकी अपेक्षा समस्त लोक प्रमाण स्पर्शका निर्देश नहीं किया है इससे जाना जाता है कि यहां तिर्यंच और मनुष्यसम्बन्धी वैक्रियिकका ग्रहण नहीं किया है।
विशेषार्थ-वैक्रियिककाययोगी जीवोंका वर्तमानकालीन स्पर्श लोकका असंख्यातवां भाग ही है। स्वस्थानस्वस्थानपदकी अपेक्षा अतीतकालीन स्पर्श भी लोकका असंख्यातवां भाग होता है पर उसके कहनेकी यहां विवक्षा नहीं है या 'वा' शब्दके द्वारा उसका समुच्चय कर लिया है। वैक्रियिक शरीर नामकर्मके उदयसे जिन्हें वैक्रियिकशरीर प्राप्त है उनका मारणान्तिक समुद्धात त्रसनालीके भीतर मध्य लोकसे नीचे छह राजु और ऊपर सात राजु क्षेत्रमें ही होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये यहां अतीतकालीन स्पर्श दो प्रकारसे कहा है। यद्यपि मनुष्य और तिर्यंच भी विक्रिया करते हैं और यदि यहां इनकी विक्रियाकी अपेक्षा स्पर्श कहा जाय तो विक्रिया प्राप्त मनुष्य और तिर्यंचोंके मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा अतीतकालमें सर्व लोक स्पर्श हो सकता है पर यहां इसका
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