Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

Previous | Next

Page 553
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ पेज्जदोसविहत्ती ? ६३६१. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण पेजदोसविहत्तियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णत्थि अंतरं । एवं जाव अणाहारएत्ति वत्तव्वं । णवरि, मणुसअपज्जत्ताणं जहण्णेण एगसमओ, उक्कम्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एवं सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिहि त्ति वत्तव्वं । वेउव्वियमिस्सकायजोगीणं जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण बारस मुहुत्ता। आहारमिस्सकायजोगीणं अपेक्षा भी पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समय बन जाता है। जिनके पेज्ज या दोषके कालमें एक समय शेष है ऐसे बहुतसे सम्यग्दृष्टि जीव जब सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त होते हैं तब मिश्रगुणस्थानमें पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समय बन जाता है। या जो सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव पेज्ज और दोषके साथ एक समय रह कर द्वितीय समयमें सबके सब मिथ्यात्व या सम्यक्त्वको प्राप्त हो जाते हैं उन सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समय होता है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके समान उपशमसम्यग्दृष्टियोंके भी पेज्ज और दोषके जघन्य कालकी प्ररूपणा कर लेना चाहिये। जिनके पेज्ज और दोषमें एक समय शेष है ऐसे बहुतसे जीव एकसाथ आहारककाययोग या आहारकमिश्रकाययोगको प्राप्त हुए और दूसरे समयमें उनके पेज्ज या दोषभाव बदल गया ऐसे आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समय पाया जाता है। या जो आहारककाययोगी एक समय तक पेज्ज और दोषके साथ रहे और दूसरे समयमें उनके अन्य योग आजाता है उनके भी पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समय पाया जाता है। अपगतवेदियोंमें मरणकी अपेक्षा पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समय होता है। उसमें भी दोषका उपशमश्रेणी चढ़नेकी अपेक्षा और पेज्जका उपशमश्रेणी चढ़ने और उतरने दोनोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय बन जाता है। उत्कृष्ट काल उन उन मार्गणाओंके उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा कहा है। अर्थात् जिस मार्गणाका जितना उत्कृष्ट काल है उस मार्गणामें उतना पेज्ज और दोषका उत्कृष्ट काल होगा, जो ऊपर कहा ही है। इसप्रकार कालानुयोगद्वारका वर्णन समाप्त हुआ। ___३९१. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा पेज्जवाले और दोषवाले जीवोंका अन्तर काल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं पाया जाता है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि पेज्ज और दोषकी अपेक्षा मनुष्य अपर्याप्तकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके अन्तरका कथन करना चाहिये । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है। आहारक Jain Education International www.jainelibrary.org | For Private & Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572