Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ पेज्जदोसविहत्ती १
९३८६. वेउव्वियमिस्स०आहार०आहारमिस्स० अवगद०मणपञ्जव संजद० सामाइ० छेदोवडा० परिहारविसुद्धि० सुहुम० संजदाणं खेत्तभंगो । आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीहि केवडियं खेत्तं फ़ोसिदं ? लोगस्स असंखेजदिभागो अह चोहसभागा वा देसूणा । एवमोहिदंसण - खइय० सम्मादिहि-वेदग० उवसम० सम्मामिच्छादिट्ठि त्ति वत्तव्वं । एवं सासणसम्मादिहीणं । णवरि, बारह चोदसभागा वा देसूणा । संजदासंजदाणं छ चोहसभागा वा देखणा । एवं फोसणं समत्तं ।
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संग्रह नहीं किया गया है, यह इसीसे स्पष्ट है कि यहां वैक्रियिककाययोगी जीवोंका अतीत कालीन स्पर्श सर्व लोक नहीं कहा है ।
$ ३८९. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवोंका स्पर्श इनके क्षेत्रके समान है । अर्थात् इनका क्षेत्र जिसप्रकार लोकका असंख्यातवां भाग है उसीप्रकार स्पर्श भी लोकका असंख्यातवां भाग है । लोक असंख्यातवें भाग सामान्यकी अपेक्षा दोनों में कोई भेद नहीं है, अतः उक्त मार्गणाओं का स्पर्श क्षेत्रके समान कहा है ।
मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, औपशमिक सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका स्पर्श कहना चाहिये । तथा इसीप्रकार सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों का भी स्पर्श कहना चाहिये । पर इतनी विशेषता है कि सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम बारह भाग क्षेत्रका भी स्पर्श किया है। तथा संयतासंयतों का त्रसनाली के चौदह भागों में से कुछ कम छह भाग प्रमाण स्पर्श है ।
विशेषार्थ - उपर्युक्त सभी मार्गणाओं में वर्तमानकालीन स्पर्श लोकका असंख्यातवां भाग है । यद्यपि यहां संयतासंयतों का वर्तमानकालीन स्पर्श नहीं कहा है पर वह प्रकरण से लोकका असंख्यातवां भाग जान लेना चाहिये । अतीतकालीन स्पर्श में जो विशेषता है वह ऊपर कही ही है । सासादन सम्यग्दृष्टि देव मारणांतिक समुद्धात करते हुए भवनवासी देवोंके निवासस्थानके मूल भागसे ऊपर ही समुद्धात करते हैं और छठी पृथिवी तकके सासादनसम्यग्दृष्टि नारकी मनुष्य और तिर्यचों में मारणान्तिक समुद्धात करते हैं इस विशेषताके बतलाने के लिये सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अतीतकालीन स्पर्श त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम बारह भाग भी कहा है ।
इसप्रकार स्पर्शनानुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
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