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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पेज्जदोसविहत्ती १
संजद ० सामाइय० छेदोवद्यावण० परिहार०संजदासंजद - असंजद-चक्खुदंसण-अचक्खुदंसणकिण्ह - णील- काउ-पम्मलेस्सिय-भवसिद्धिय- अभवसिद्धिय-मिच्छादिट्ठि - असण्णि-आहारअणाहारएत्ति वत्तव्वं ।
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३६४. आदेसेण णिरयगईए पेरइएस सव्वत्थोवा पेज्जविहत्तिया, दोसविहत्तिया संखेज्जगुणा । एवं सत्तसु पुढवीसु । देवगदीए देवेसु सव्वत्थोवा दोसविहत्तिया, पेज्जविहत्तिया संखेज्जगुणा । एवं सव्वदेवाणं । पंचमण • तिष्णिवचि ० वेउब्विय० वेउब्विमिस्स ० इत्थवेद - पुरिसवेद - विभंगणाण- आभिणिबोहिय० सुद० ओहि • ओहिंदंसण - तेउ० सुक्क०सम्मा० खइय० वेदग० उवसम० सासण० सम्मामिच्छाइट्ठि-सण्णि त्ति वत्तव्वं । एवमप्पाबहुगे समत्ते
पेजदोसविहत्ती समत्ता होदि । एवमसीदिसदगाहासु तदियगाहाए अत्थो समत्तो ।
सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक इनका कथन करना चाहिये । अर्थात् उक्त मार्गणाओंमें दोषविभक्त जीव सबसे थोड़े हैं और पेज्जविभक्त जीव उनसे विशेष अधिक हैं ।
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३४. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नरकगति में नारकियों में पेज्जयुक्त जीव सबसे थोड़े हैं । दोषयुक्त जीव उनसे संख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार सातों पृथिवियोंमें कथन करना चाहिये । देवगतिमें देवोंमें दोषयुक्त जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे पेज्जयुक्त जीव संख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार सभी देवोंमें कथन करना चाहिये । तथा पांचों मनोयोगी, सत्य, असत्य और उभय ये तीन वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अवधिदर्शनी, तेजोलेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, और संज्ञी इनका भी इसीप्रकार कथन करना चाहिये । इसप्रकार अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार के समाप्त होने पर -
पेजदोषविभक्ति अधिकार समाप्त होता है ।
इसप्रकार एक सौ अस्सी गाथाओं में से तीसरी गाथाका अर्थ समाप्त हुआ ।
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