Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 542
________________ गा० २१] पेज्जदोसेसु बारस अणियोगद्दाराणि ३६५ सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? संखेजदिभागो। एवं पंचमण तिण्णिवचि०वेउव्विय० वेउव्वियमिस्स०इत्थिवेद-पुरिस विभंग आभिणिबोहिय सुद०ओहिणाणि-ओहिदंसते उलेस्सा-सुक्कलेस्सा-सम्मादि०खइय वेदग उवसम सासणसम्मामिच्छा०सण्णि त्ति बत्तव्वं । चत्तारिकसाएसु सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु च णत्थि भागाभाग; एगपदत्तादो। एवं भागाभागं समत्तं ।। देवोंके संख्यात बहुभाग हैं। दोषयुक्त देव समस्त देवों के कितने भागप्रमाण हैं ? दोषयुक्त देव समस्त देवोंके संख्यातवें भाग हैं। इसीप्रकार पांचों मनोयोगी, सामान्य और अनुभयको छोड़कर तीनों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अवधिदर्शनी, तेजोलेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले, सामान्य सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिध्यादृष्टि और संज्ञी इन जीवोंके भी समझना चाहिये । अर्थात् विवक्षित उक्त मार्गणास्थानोंमें संख्यात बहुभाग पेज्जयुक्त और संख्यात एकभाग दोषयुक्त जीव हैं। चारों कषायोंमें और सूक्ष्मसांपरायिकशुद्धिसंयत जीवोंमें भागाभाग नहीं पाया जाता है, क्योंकि वहां एक ही स्थान है, अर्थात् विवक्षित स्थानोंको छोड़कर अन्यत्र चारों कषायोंसे उपयुक्त जीव सर्वदा पाये जाते हैं। किन्तु विवक्षित स्थानोंमेंसे कषाय मार्गणामें जहां जो कषाय है वहां उसीका उदय है अन्यका नहीं इसलिये एक स्थान है। तथा सूक्ष्मसांपरायमें केवल लोभका ही उदय है अतः वहां भी दो स्थान नहीं हैं, अतः इनमें भागाभाग नहीं होता। विशेषार्थ-भागाभागमें कौन किसके कितने भागप्रमाण हैं इसका मुख्यरूपसे विचार किया जाता है। प्रकृतमें सामान्यरूपसे और विशेषरूपसे पेज्ज और दोषभावको प्राप्त जीव किसके कितने भाग हैं यह बताया गया है। लोकमें जितने सकषाय जीव हैं उनमें आधेसे अधिक जीव पेज्जभावको प्राप्त हैं और आधेसे कुछ कम जीव दोषभावको प्राप्त हैं । मार्गणास्थानोंकी अपेक्षा विचार करने पर उनकी प्ररूपणा चार प्रकारसे हो जाती है। कुछ मार्गणास्थानोंमें पेज्ज और दोषभावको प्राप्त जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान ही है। कुछ मार्गणास्थानोंमें संख्यात बहुभाग जीव दोषभावको प्राप्त और संख्यात एक भाग जीव पेज्जभावको प्राप्त हैं। तथा कुछ मार्गणास्थानों में संख्यात बहुभाग जीव पेज्जभावको प्राप्त हैं और संख्यात एकभाग जीव दोषभावको प्राप्त हैं। तथा कषाय मार्गणा और सूक्ष्म सांपरायसंयत ये ऐसी मार्गणाएं हैं जिनमें पेज्ज और दोषकी अपेक्षा भागाभाग संभव नहीं है। जिन मार्गणाओंमें पेज्ज और दोषकी अपेक्षा न्यूनाधिक या संख्यात बहुभाग और संख्यात एकभाग प्रमाण जीव हैं उनके नाम ऊपर गिनाये ही हैं। इसप्रकार भागाभागानुयोगद्वार समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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