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गा० २१ ] पेज्जदोसेसु धारस अणियोगद्दाराणि ... पेज्जं सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? दुभागो सादिरेओ। दोसो सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? दुभागो देसूणो । एवं सव्वतिरिक्ख०सवमणुस्स०सव्वएइंदिय०सव्वविगलिंदिय०सव्वपंचिंदिय०पंचकायबादरसुहम-तसपञ्जत्तापज्जत्त-दोवचिजोगि-कायजोगि-ओरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगि-कम्मइयकायजोगि-णवुसंयवेद-मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणि-मणपजवणाणि-संजद-सामाइयछेदोवटावण-परिहारविसुद्धिसंजद-संजदासंजद-चक्खुदंस०अचक्खुदंसण-किण्ह-णीलकाउ-पम्मले भवसिद्धिय-अभवसिद्धिय-मिच्छादि०असण्णि-आहारि-अणाहारित्ति वत्तव्यं ।
६ ३७६. आदेसेण णिरयगदीए णेरइएसु पेजं सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? संखेजदिभागो। दोसो सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? संखेजा भागा । एत्थ कोह-माण
निर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा पेज्ज युक्त जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण है ? पेजयुक्त जीव सब जीवोंके कुछ अधिक आधेभाग प्रमाण हैं। दोषयुक्त जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? दोषयुक्त जीव सब जीवोंके कुछ कम आधेभाग प्रमाण है। अर्थात् आधेसे कुछ अधिक जीव पेज्जरूप हैं और आधेसे कुछ कम जीव दोषरूप हैं । इसीप्रकार पाचों प्रकार के तिर्यंच, चारों प्रकारके मनुष्य, बादर और सूक्ष्म तथा उनमें पर्याप्त और अपर्याप्त भेदवाले सभी प्रकारके एकेन्द्रिय जीव, पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे सभी प्रकारके विकलेन्द्रिय जीव, संज्ञी और असंज्ञी तथा उनमें पर्याप्त और अपर्याप्त भेदवाले सभी पंचेन्द्रिय जीव, बादर और सूक्ष्मरूप पांचों स्थावरकाय, पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे दो प्रकारके त्रसकाय, सामान्य वचनयोगी और अनुभयवचनयोगी इसप्रकार दो वचनयोगी, सामान्य काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्र काययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी, सामान्य संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, चक्षुदर्शनवाले अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कपोतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असज्ञी, आहारी और अनाहारी इन जीवोंके भी समझना चाहिये । अर्थात् ऊपर कहे गये स्थानोंमेंसे विवक्षित स्थानमें कुछ अधिक आधे भाग प्रमाण पेज्जयुक्त जीव हैं और कुछ कम आधेभाग प्रमाण दोषयुक्त जीव हैं।
६३७६. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें पेज्जयुक्त नारकी जीव सभी नारकी जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? पेज्जयुक्त नारकी सामान्य नारकियोंके संख्यातवें भाग हैं। दोषयुक्त नारकी सामान्य नारकियोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? दोषयुक्त नारकी सामान्य नारकियोंके संख्यात बहुभाग हैं। नरकगतिमें क्रोध और मान कषाय दोष हैं माया और
(१)-रेए अ०, आ० । (२) असण्णिणो आहारिणो स० ।
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