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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती १ संगादो । तम्हा उदयस्सेव बंध-संताणं पि पच्चयकसाएण कसायत्तमिच्छियव्यं ?ण कोहजणणाजणणसहावेण हिदिभेएण च भिण्णदव्याणमेयत्तविरोदादो । ण च लक्खणभेदे संते दव्वाणमेयत्तं होदि; तिहुवणस्स भिण्णलक्खणस्स एयत्तप्पसंगादो । ण च एवं, उड्ढाधो-मज्झभागविरहियस्स एयरस पमाणविसए अदंसणादो । तम्हा ण बंधसंतदव्वाणं कम्मत्तमस्थि; जेण कोहोदयं पडुच्च जीवो कोहकसाओ जादो तं कम्ममुदयगयं पच्चयकसाएण कसाओ त्ति सिद्धं । ण च एत्थ दव्वकम्मरस उवयारेण कसायत्तं; उजुसुदे उवयाराभावादो। कथं पुण तस्स कसायत्तं ? उच्चदे-दव्वभावकम्माणि जेण जीवादो अपुधभूदाणि तेण दव्वकसायत्तं जुञ्जदे ।
* एवं माणादीणं वत्तव्वं । है उसीप्रकार उसे उनके बन्ध और सत्त्वको भी प्रत्ययकषायकी अपेक्षा कषायरूपसे स्वीकार करना चाहिये ?
समाधान-नहीं, क्योंकि बन्ध उदय और सत्त्वरूप कर्मद्रव्यमें क्रोधको उत्पन्न करने और न करनेकी अपेक्षा तथा स्थितिकी अपेक्षा भेद पाया जाता है अर्थात् उदयागत कर्म क्रोधको उत्पन्न करता है किन्तु बन्ध और सत्त्व अवस्थाको प्राप्त कर्म क्रोधको उत्पन्न नहीं करता है तथा बन्धकी एक समय स्थिति है, उदयकी भी एक समय स्थिति है और सत्त्वकी स्थिति अपने अपने कर्मकी स्थितिके अनुरूप है अतः उन्हें सर्वथा एक मानने में विरोध आता है। यदि कहा जाय कि लक्षणकी अपेक्षा भेद होने पर भी द्रव्यों में एकत्व हो सकता है सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर भिन्न भिन्न लक्षणवाले तीनों लोकोंको भी एकत्वका प्रसङ्ग प्राप्त हो जाता है। यदि कहा जाय कि तीनों लोकोंको एकत्वका प्रसङ्ग प्राप्त होता है तो हो जाओ, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऊर्ध्वभाग, मध्यभाग
और अधोभागसे रहित एक लोक प्रमाणका विषय नहीं देखा जाता है इसलिये ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा बन्ध और सत्त्वरूप द्रव्यके कर्मपना नहीं बनता है। अतः चूंकि क्रोधके उदयकी अपेक्षा करके जीव क्रोधकषायरूप होता है, इसलिये ऋजुसूत्रनयकी दृष्टि में उदयको प्राप्त हुआ क्रोधकर्म ही प्रत्ययकषायकी अपेक्षा कषाय है यह सिद्ध होता है। यदि कहा जाय कि उदय द्रव्यकर्मका ही होता है अतः ऋजुसूत्रनय उपचारसे द्रव्यकर्मको भी प्रत्ययकषाय मान लेगा सो भी कहना ठीक नहीं है। क्योंकि ऋजुसूत्रनयमें उपचार नहीं होता है।
शंका-यदि ऐसा है तो द्रव्यकर्मको कषायपना कैसे प्राप्त हो सकता है ?
समाधान-चूंकि द्रव्यकर्म और भावकर्म दोनों ही जीवसे अभिन्न हैं इसलिये द्रव्यकर्ममें द्रव्यकषायपना बन जाता है।
* जिसप्रकार ऋजुसूत्रनयकी दृष्टि से द्रव्यक्रोधके उदयको प्रत्ययकषायकी अपेक्षा क्रोधकषाय कहा है उसीप्रकार मानादिकका भी कथन करना चाहिये ।
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