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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेजदोसविहत्ती ? पेजदोसपाहुडस्स वि समासो दरिसेयव्यो । एवमुवक्कमो समत्तो । है। जिसप्रकार कषायपाहुडका समास दिखला आये हैं उसीप्रकार पेज्जपाहुड और दोषपाहुडका भी समास दिखलाना चाहिये ।
इसप्रकार उपक्रमका कथन समाप्त हुआ।
विशेषार्थ-जितने प्राकृत व्याकरण हैं उनमें संस्कृत शब्दोंसे प्राकृत शब्द बनानेके नियम दिये हैं। ऊपर चूर्णिसूत्रकारने जो ‘पाहुड' शब्दकी निरुक्ति की है। उसमें भी पद और स्फुट इन दो शब्दोंको मिलाकर पाहुड शब्द बनाया है। जिसका अर्थ जो पदोंसे स्फुट अर्थात् व्यक्त या सुगम हो उसे पाहुड कहते हैं यह होता है। पाहुडका संस्कृतरूप प्राभृत है। जिसका उल्लेख वीरसेनस्वामीने ऊपर किया है। पद+स्फुटसे पाहुड शब्द निष्पन्न करते समय वीरसेनस्वामीने प्राकृतव्याकरणसंबन्धी प्राचीन पांच गाथाओंका निर्देश किया है। पहली गाथामें यह बताया है कि जिस पदके आदि, मध्य और अन्तमें वर्ण या स्वर न हो उसका वहां लोप समझ लेना चाहिये । इस नियमके अनुसार प्राकृतमें कहीं कहीं विभक्तिका भी लोप हो जाता है। जैसे, जीवट्ठाणके 'संतपरूवणा' अनुयोगद्वारसम्बन्धी 'गइ इंदिए काए' इत्यादि सूत्रमें 'गई' पदमें विभक्तिका लोप इसी नियमके अनुसार हुआ है। दूसरी गाथामें स्वरसंबन्धी नियमोंका उल्लेख किया है। सिद्ध हेमव्याकरणमें अ से लेकर लू तकके स्वरोंकी समान संज्ञा बताई है। पर प्राकृतमें ऋ ऋ लू लु ये चार स्वर नहीं होते हैं अतः इस गाथामें अ आ इ ई उ और ऊ इन छह स्वरोंको ही समान कहा है। तथा सिद्धहेमव्याकरणमें ए ऐ ओ औ इन चार स्वरोंकी सन्ध्यक्षर संज्ञा की है । पर प्राकृतमें 'ऐ औ' ये स्वर नहीं हैं अतः इस गाथामें ए और ओ इन दोकी ही सन्ध्यक्षरसंज्ञा की है। अनन्तर गाथामें बताया है कि ये आठों स्वर परस्पर एक दूसरेके स्थानमें आदेशको प्राप्त होते हैं। इसका यह अभिप्राय है कि संस्कृत शब्दसे प्राकृत शब्द निष्पन्न करते समय प्राकृतके प्रयोगानुसार किसी भी एक स्वरके स्थानमें कोई दूसरा स्वर हो जाता है। तीसरी गाथामें संयुक्त वर्णके लोपका नियम दिया है। ऐसे बहुतसे शब्द हैं जिनमें संस्कृत उच्चारण करते समय एक, दो आदि संयुक्त वर्ण पाये जाते हैं पर प्राकृत उच्चारणमें वे नहीं रहते । इस गाथामें इसीकी व्यवस्था की है । चौथी गाथामें यह बताया है कि प्रत्येक वर्गके पहले और दूसरे अक्षरके स्थानमें क्रमशः तीसरा और चौथा वर्ण हो जाता है। यह सामान्य नियम है। इसके अपवाद नियम भी बहुतसे पाये जाते हैं। पांचवी गाथाका केवल एक पाद ही उद्धृत किया गया है। इसमें यह बतलाया है कि किन अक्षरोंके स्थानमें ह हो जाता है। इस गाथांशमें ऐसे अक्षर ख ध ध भ और स ये पांच बताये हैं। यद्यपि अन्य प्राकृत व्याकरणोंमें ख घ थ ध और भ के स्थानमें ह होता है ऐसा सामान्य नियम आता है। और दिवस आदि शब्दोंमें स के स्थानमें ह
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