Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २१ ] पेज्जदोसेसु बारस अणियोगद्दाराणि
६३६०. सादि-अद्भुवाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण पेज्जदोसं किं सादियं किमणादियं किं धुवं किमद्धवं ? एगजीवं पडुच्च सादि अद्भुवं; पेज्जे दोसे वा सव्वकालमवडिदजीवाणुवलंभादो । णाणाजीवे पडुच्च अणादियं धुवं; पेजे दोसे च वट्टमाणजीवाणं आइयंताभावादो । आएसेण सव्वत्थ पेजदोसं सादि अद्भुवं; एगेगमग्गणासु सव्वकालमवहिदजीवाभावादो। एवं सादि-अद्धवअहियारा बे वि समत्ता। हैं, अतः यह आदेश प्ररूपणा है। इसीप्रकार आगे भी जहां पर 'आदेसेण य' ऐसा न कह कर ‘णवरि' पदके द्वारा सामान्यप्ररूपणाके अपवाद दिये जायं वहां उस प्ररूपणाको आदेशप्ररूपणा समझना चाहिये।
६३६०. सादि और अध्रुवानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश।
शंका-ओघनिर्देशकी अपेक्षा पेज्ज और दोष क्या सादि हैं, क्या अनादि हैं, क्या ध्रुव हैं अथवा क्या अध्रुव हैं ?
समाधान-एक जीवकी अपेक्षा पेज्ज और दोष दोनों सादि और अध्रुव हैं, क्योंकि पेज्जमें और दोषमें एक जीव सर्वदा स्थित नहीं पाया जाता है। नाना जीवोंकी अपेक्षा पेज्ज और दोष दोनों अनादि और ध्रुव हैं, क्योंकि पेज्ज और दोषमें विद्यमान जीवोंका आदि और अन्त नहीं पाया जाता है।
आदेशनिर्देशकी अपेक्षा सभी मार्गणाओंमें पेज्ज और दोष सादि और अध्रुव हैं, क्योंकि किसी भी मार्गणामें एक जीव सर्वकाल अवस्थित नहीं पाया जाता है। इसप्रकार सादि और अध्रुव ये दोनों ही अधिकार समाप्त हुए ।
विशेषार्थ-पेज्ज और दोषका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। एक जीव इससे अधिक काल तक पेज्ज और दोषमें नहीं पाया जाता है, अतः ओघनिर्देशसे एक जीवकी अपेक्षा पेज्ज और दोषको सादि और अध्रुव कहा है। इसप्रकार यद्यपि पेज्ज और दोषका जघन्य
और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है फिर भी उनकी सर्व काल सन्तान नहीं टूटती है कोई न कोई जीव पेज्ज और दोषसे युक्त सर्वदा बना ही रहता है । अनादि कालसे लेकर अनन्त कालतक ऐसा एक भी क्षण नहीं है जिस समय पेज्ज और दोषका अभाव कहा जा सके। अतः ओघनिर्देशसे नाना जीवोंकी अपेक्षा पेज्ज और दोषको अनादि और ध्रुव कहा है। आदेशमें जीवकी भिन्न भिन्न अवस्थाओंकी अपेक्षा विचार किया गया है। चूंकि एक अवस्था में सर्वकाल कोई भी जीव सर्वदा अवस्थित नहीं रहता है, अतः उसके अवस्थाभेदके साथ पेज्ज और दोष भी बदलते रहते हैं, और इसीलिये आदेशकी अपेक्षा पेज्ज और दोष सादि और अध्रुव हैं।
(१)-सण सा-अ०, आ०। (२) आदिअंता-आ० ।
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