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जंयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पेज्जदोस विहत्ती १
९ ३७०. कुदो ? अंतोमुहुत्तमेत्तजहण्णुक्कस्सकाल पडिबद्धतेण तत्तो भेदाभावादो । एत्थ वि एयसमयसंभवमासंकिय पुव्वं व परिहारेयव्वं । एवमोघपरूवणा गदा । * आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए रइएस पेज दोसं केव चिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एगसमओ' ।
९३७१. कुदो ? तिरिक्ख - मणुस्सेसु पेज- दोसेसु अंतोमुहुत्तमच्छिदेसु तेसिमद्धाए समयावसेसाए रइएस उप्पण्णेसु एगसमयउवलंभादो ।
$३७२. उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । कुदो ! साभावियादो । एवं सेसाणं सव्वमग्गणाणं ९ ३७०. शंका - पेज्जके विषय में भी इसीप्रकार क्यों समझ लेना चाहिये ?
समाधान- क्योंकि पेज्ज भी अन्तर्मुहूर्तमात्र जघन्य और उत्कृष्ट कालके साथ संम्बद्ध है, अर्थात् पेज्जका भी जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिये दोषसम्बन्धी काल प्ररूपणा से पेज्जसम्बन्धी कालप्ररूपणा में कोई भेद नहीं है । यहां पर भी एक समय कालकी आशंका करके पहले के समान उसका परिहार कर लेना चाहिये ।
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विशेषार्थ - पहले दोष का कथन करते समय यह बतला आये हैं कि सामान्य की अपेक्षा उसका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तसे कम नहीं हो सकता । उसीप्रकार पेज्जका भी समझना चाहिये । मरण और व्याघातादिसे इस अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल में कोई अन्तर नहीं पड़ता । चक्षुदर्शनी जीव माया और लोभ के कालमें एक समय शेष रह जाने पर एकेन्द्रियादि अचक्षुदर्शनवाले जीवोंमें उत्पन्न हो जाते हैं यह कहना भी नहीं बनता है, क्योंकि अचक्षुदर्शन छद्मस्थ जीवोंके सर्वदा पाया जाता है । अतः अचक्षुदर्शनी जीवोंके दोष के समान पेज्जकी भी एक समय सम्बन्धी प्ररूपणा नहीं बन सकती है ।
इसप्रकार ओवप्ररूपणा समाप्त हुई ।
* आदेशकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें नारकियोंमें पेज्ज और दोषका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय है ।
$ ३७१. शंका- नारकियों में पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समय कैसे है ? समाधान - पेज्ज और दोषमें तिर्यंच और मनुष्यों के अन्तर्मुहूर्त कालतक रहने पर जब पेज्ज और दोषका काल एक समय शेष रह जाय तब मरकर उनके नारकियों में उत्पन्न होने पर नारकियोंके पेज्ज और दोषका काल एक समयमात्र पाया जाता है । अतः नारकियोंके पेज्ज और दोषका जघन्य काल एक समयमात्र कहा है ।
$ ३७२. नारकियों में पेज्ज और दोषका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । शंका- नारकियों में पेज्ज और दोषका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कैसे है ?
समाधान—क्योंकि उत्कृष्ट रूपसे अन्तर्मुहूर्त कालतक रहना पेज्ज और दोषका स्वभाव (१) “गदीसु णिक्खमणपवेसणेण एगसमयो होज्ज ।" - कसाय० उवजोगा० प्रे० का० पृ० ५८५७ ।
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