Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 483
________________ ३३६ taraaree कसा पाहुडे पेज्जदोस विहत्ती १ परूविदं १ ण एस दोसो, जहण्णमणजोगद्धाए अंतब्भावेण तिस्से पुधपरूवणाभावादो । ९३०५. ' अवाय - ईहा - सुदुस्सा से' अवायणाणोवजोगजहण्णिया अद्धापासिंदियओग्गहणाणस्स जहण्णद्धादो विसेसाहिया । एसा अवायणाणजहण्णद्धा सव्विंदिएसु सरिसा । तं कथं णच्वदे ? इंदियं पडि ओग्गहणाणस्सेव पुध परूवणाभावादो । ९ ३०६. ईहाए जहणिया अद्धा विसेसाहिया । का ईहा ? ओग्गहणाणग्गहिए अत्थे विण्णाणाउ पमाण- देस-भासादिवि से साकंखणमीहा । ओग्गहादो उवरिं अवायादो हेहा जं णाणं विचारप्पयं समुप्पण्ण संदेह छिंदणसहावमीहा त्ति भणिदं होदि । ईहादो उवरिमं णाणं विचारफलप्पयमवाओ । तत्थ जं कालंतरे अविस्सरणहेउसंसकारुप्पाययं गाणं णिण्णय सरूवं सा धारणा । ओग्गहादीणं धारणंताणं चउण्हं पि महणाणववएसो । ज्ञान को क्यों नहीं सम्मिलित किया ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि मनसे उत्पन्न होनेवाले अवग्रहज्ञानके जघन्यकालका मनोयोगके जघन्य कालमें अन्तर्भाव हो जाता है, इसलिये उसका पृथक् कथन नहीं किया है । ९ ३०५. अवाय ज्ञानोपयोगका जघन्य काल स्पर्शन इन्द्रियसे उत्पन्न हुए अवग्रहज्ञानके जघन्य कालसे विशेष अधिक है । यह अवाय ज्ञानका जघन्य काल सभी इन्द्रियों में समान है । अर्थात् सभी इन्द्रियोंसे उत्पन्न हुए अवायज्ञानका काल बराबर है । शंका- यह अवायज्ञानका जघन्य काल सभी इन्द्रियोंमें समान होता है, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान - जिसप्रकार प्रत्येक इन्द्रियके अवग्रहज्ञानका काल अलग अलग कहा है। उस प्रकार प्रत्येक इन्द्रियके अवायज्ञानका काल अलग अलग नहीं कहा है। इससे जाना जाता है कि अवायज्ञानका जघन्य काल सभी इन्द्रियोंमें समान होता है । § ३०६. ईहाका जघन्यकाल अवायके जघन्यकालसे विशेष अधिक होता है । शंका- ईहा किसे कहते हैं ? समाधान - अवग्रह ज्ञानके द्वारा ग्रहण किये गये पदार्थ में विज्ञान, आयु, प्रमाण, देश, और भाषा आदिरूप विशेषके जाननेकी इच्छाको ईहाज्ञान कहते हैं । अवग्रहज्ञानके पश्चात् और अवायज्ञानके पहले जो विचारात्मक ज्ञान होता है जिसका स्वभाव अवग्रहज्ञानमें उत्पन्न हुए संदेहको दूर करना है वह ईहाज्ञान है, ऐसा अभिप्राय समझना चाहिये । ईहा के अनन्तर ईहारूप विचारके फलस्वरूप जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे अवायज्ञान कहते हैं अर्थात् ईहाज्ञानमें विशेष जानने की आकांक्षारूप जो विचार होता है उस विचारके निर्णयरूप ज्ञानको अवाय कहते हैं । अवायज्ञानसे जाने हुए पदार्थ में कालान्तर में अविस्मरणके कारणभूत संस्कारको उत्पन्न करानेवाला जो निर्णयरूप ज्ञान होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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