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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पेज्जदोस विहत्ती १ पेजं वा दोसो वा कम्मि कसायम्मि कस्स व णयस्स । दुट्ठो व कम्मि दव्वे पियायए को कहिं वा वि ॥२१॥
३३३. एंदस्स गणहरगुणहराइरियआसंकासुत्तस्स पेजदोसत्थाहियारपडिबद्धस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहा, 'कस्स' 'कम्मि' त्ति बे वि पदाणि अंतोभावियविच्छत्थाणि, तेणेवं सुत्तत्थो संबंधेयव्यो । कस्स णयस्स कम्मि कम्मि कसायम्मि पेज होदि । तदिओ 'वा' सद्दो कसायम्मि जोजेयव्यो । तेण विदिओ अत्थो एवं वत्तव्यो-कम्मि वा कसायम्मि कुल बीस गाथाओंका व्याख्यान किया जा चुका है, फिर भी प्रकृतमें बारह सम्बन्ध गाथाएं और छह अद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली गाथाएं इसप्रकार कुल अठारह गाथाओंको सूत्र क्यों नहीं कहा इसप्रकार शंका की गई है। इकका यह कारण है कि पन्द्रह अर्थाधिकारोंका नामनिर्देश करनेवाली दो गाथाओंका समावेश एकसौ अस्सी गाथाओंमें हो जाता है और एकसौ अस्सी गाथाओंको 'गाहासदे असीदे' इत्यादि गाथाके द्वारा सूत्र संज्ञा दे ही आये हैं। उपर्युक्त अठारह गाथाओंका उन एकसौ अस्सी गाथाओंमें समावेश नहीं होता इसलिये यह शंका बनी रहती है कि अठारह गाथाएं सूत्र हैं या नहीं ? अतः केवलं इन अठारह गाथाओंके सम्बन्धमें शंका की गई है। इस शंकाका जो समाधान किया है उसका भाव यह है कि यद्यपि कषायप्राभृतमें आई हुई सभी गाथाएं सूत्र हैं फिर भी इन अठारह गाथाओंका पन्द्रह अर्थाधिकारोंके मूल विषयके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, इसका ज्ञान करानेके लिये इससे आगे कहे जानेवाले ग्रन्थको सूत्र कहा है। यहां सूत्रका अर्थ ग्रन्थ है । जिससे 'इस अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारके आगे कषायप्राभृत ग्रन्थका अवतार होता है इसप्रकार निष्कर्ष निकाल लेनेसे दोसौ तेतीस गाथाओंको सूत्र संज्ञा भी प्राप्त हो जाती है और 'एत्तो सुतसमोदारो' इस वचनकी भी सार्थकता सिद्ध हो जाती है ।
*किस नयकी अपेक्षा किस किस कषायमें पेज होता है अथवा किस कषायमें किस नयकी अपेक्षा दोष होता है ? कौन नय किस द्रव्यमें दुष्ट होता है अथवा कौन नय किस द्रव्यमें पेज होता है ?
३३३. संघके धारक गुणधर आचार्य के द्वारा कहे गये पेजदोष नामक अर्थाधिकारसे सम्बन्ध रखनेवाले इस आशंका सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इसप्रकार है-'कस्स' और 'कम्मि' इन दोनों पदोंमें वीप्सारूप अर्थ गर्भित है। इसलिये सूत्रका अर्थ इसप्रकार लगाना चाहिये-किस नयकी अपेक्षा किस किस कषायमें पेज्ज (द्रव्य) होता है ? गाथामें आये हुए तीसरे 'वा' शब्दको 'कसायम्मि' इस पदके साथ जोड़ना चाहिये । इसलिये दूसरा अर्थ इसप्रकार कहना चाहिये-अथवा किस कषायमें किस नयकी अपेक्षा दोष होता है ? कौन
(१) एदिस्से य-स०।
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