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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [पेजदोसविहत्ती ? अवसेसवत्थुविसयलोहो णोपेजं; तत्तो पावुप्पत्तिदंसणादो। ण च धम्मो ण पेज सयलसुह-दुक्खकारणाणं धम्माधम्माणं पेजदोसत्ताभावे तेसिं दोण्हं पि अभावप्पसंगादो।
६३४३. दुटो व कम्हि दव्वे' त्ति एयस्स गाहावयवस्स अत्थो वुच्चदि त्ति। जाणाविदमेदेण सुत्तेण णेदं परूवेदव्वं सुगमत्तादो;ण एस दोसो; मंदमेहजणाणुग्गहहं परूविदत्तादो।
* णेगमस्स। $३४४. णेगमणयम्स ताव उच्चदे; सव्वेसिं णयाणमकमेण भणणोवायाभावादो। * दुठो सिया जीवे सिया णो जीवे एवमभंगेसु ।
६३४५. सियासदो णिवायत्तादो जदि वि अणेगेसु अत्थेसु वट्टदे, तो वि एत्थ 'कत्थ वि काले देसे' त्ति एदेसु अत्थेसु वट्टमाणो घेत्तव्यो। 'जीवे' एकस्मिन् जीवे कचित् कदाचिद् द्विष्टो भवति, स्पष्टं तथोपलम्भात् । 'सिया णोजीवे' क्वचित्कदाचिदजीवे द्विष्टो साधनविषयक लोभसे स्वर्ग और मोक्षकी प्राप्ति देखी जाती है। तथा शेष पदार्थविषयक लोभ पेज्ज नहीं है, क्योंकि उससे पापकी उत्पत्ति देखी जाती है। यदि कहा जाय कि धर्म भी पेज्ज नहीं है, सो भी कहना ठीक नहीं है क्योंकि सुख और दुःखके कारणभूत धर्म और अधर्मको पेज्ज और दोषरूप नहीं मानने पर धर्म और अधर्मके भी अभावका प्रसंग प्राप्त होता है।
६३४३. अब गाथाके 'दुट्ठो व कम्हि दव्वे' इस अंशका अर्थ कहते हैं
शंका-पूर्वोक्त सूत्रके द्वारा गाथाके इस अंशके अर्थका ज्ञान हो ही जाता है, इस लिये उसका कथन नहीं करना चाहिये, क्योंकि यह सरल है।
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि मन्दबुद्धि जनोंके अनुग्रहके लिये गाथाके इस अंशके अर्थका कथन किया है।
* 'दुट्टो व कम्हि दव्वे' इस पादका अर्थ नैगमनयकी अपेक्षा कहते हैं ।
६३४४. पहले नैगमनयकी अपेक्षा कहते हैं, क्योंकि समस्त नयोंकी अपेक्षा एकसाथ कथन करनेका कोई उपाय नहीं है।
___ * नैगमनयकी अपेक्षा जीव किसी कालमें या किसी देशमें जीवमें द्विष्ट अर्थात द्वेषयुक्त होता है और किसी कालमें या किसी देशमें अजीवमें द्विष्ट होता है । इसीप्रकार आठों भंगोंमें समझना चाहिये ।
६३४५. 'स्यात्' शब्द निपातरूप होनेसे यद्यपि अनेक अर्थोंमें रहता है तो भी यहां पर किसी भी कालमें और किसी भी देशमें ' इस अर्थमें उसका ग्रहण करना चाहिये । जीव जीवमें अर्थात् एक जीवमें कहीं पर और किसी कालमें द्विष्ट होता है, यह बिलकुल स्पष्ट है, क्योंकि जीव जीवसे द्वेष करता हुआ पाया जाता है। कहीं पर और किसी कालमें जीव एक अजीवमें द्विष्ट अर्थात् द्वेषयुक्त होता है, क्योंकि कभी कभी इसप्रकारसे अजीवमें
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