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गा० २१ ] कसाएसु पेज्जदोसविभागो
३७१ भवति; कदाचित्तथाऽप्रियत्वदर्शनात् । 'एवमहभंगेसु' एदेहि दोहि भंगेहि सह अहसु भंगेसु दुहो वत्तव्यो। तं जहा, सिया जीवेसु, सिया णोजीवेसु, सिया जीवे च णोजीवे च, सिया जीवे च णोजीवेसु च, सिया जीवेसु च णोजीवे च, सिया जीवेसु च णोजीवेसु च जीवो दुटो होदि ति अह भंगा । ण च एदेसु कोहुप्पत्ती अप्पसिद्धा; उवलंभादो ।
* 'पियायदे को कहिं वा वि' त्ति एत्थ वि णेगमस्स अट्ठ भंगा।
३४६. 'कः कस्मिन्नर्थे प्रियायते' इत्यत्रापि नैगमनयस्याष्टौ भंगा वक्तव्याः। न चैतेऽप्रसिद्धाः; उपलम्भात् । के ते अह भंगा ? वुच्चदे-सिया जीवे, सिया णोजीवे, सिया जीवेसु, सिया णोजीवेसु, सिया जीवे च णोजीवे च, सिया जीवे च णोजीवेसु च, सिया जीवेसु च णोजीवे च, सिया जीवेसु च णोजीवेसु च पियत्तं होदि णेगमस्स । कुदो एदस्स अभंगा वुचंति ? संगहासंगहविसयत्तादो। अप्रीति देखी जाती है। इसीप्रकार आठों भंगोंमें समझना चाहिये । अर्थात् इन दोनों भंगोंके साथ आठों भंगोंमें द्विष्टका कथन करना चाहिये। वह इसप्रकार है-जीव कहीं और कभी अनेक जीवोंमें, कहीं और कभी अनेक अजीवोंमें, कहीं और कभी एक जीवमें और एक अजीवमें, कहीं और कभी एक जीवमें और अनेक अजीवोंमें, कहीं और कभी अनेक जीवोंमें और एक अजीवमें तथा कहीं और कभी अनेक जीवोंमें और अनेक अजीवों में द्वेषयुक्त होता है। इसप्रकार ये आठ भंग हैं। इन एक जीव आदि आठ भंगोंका आश्रय लेकर क्रोधकी उत्पत्ति अप्रसिद्ध नहीं है, क्योंकि एक जीव आदिको लेकरके उसकी उत्पत्ति देखी जाती है। __* गाथाके 'पियायदे को कहिं वा वि' इस चतुर्थ पादमें भी नैगमनयकी अपेक्षा आठ भंग होते हैं।
६३४६. 'कौन किस पदार्थमें प्रेम करता है। यहां पर भी नैगमनयकी अपेक्षा आठ भंगोंका कथन करना चाहिये । ये आठों भंग अप्रसिद्ध हैं सो भी बात नहीं है, क्योंकि इनकी उपलब्धि होती है।
शंका-वे आठ भंग कौनसे हैं ?
समाधान-नैगमनयकी अपेक्षा कहीं और कभी जीवमें, कहीं और कभी अजीवमें, कहीं और कभी अनेक जीवोंमें, कहीं और कभी अनेक अजीवोंमें, कहीं और कभी एक जीवमें और एक अजीवमें, कहीं और कभी एक जीवमें और अनेक अजीवोंमें, कहीं और कभी अनेक जीवोंमें और एक अजीवमें तथा कहीं और कभी अनेक जीवोंमें और अनेक अजीवों में जीव प्रेम करता है।
शंका-ये आठों भंग नैगमनयकी अपेक्षा कैसे बन सकते हैं ? समाधान-क्योंकि नैगमनय संग्रह और असंग्रह दोनोंको विषय करता है, इस
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