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गा० २०]
सुत्तसमोदारो १३३२. एत्तो' एदम्हादो अप्पाबहुआदो उवरित्ति भणिदं होदि। 'सुत्तसमोदारो' सुत्तस्स अवयारो ‘होदि' त्ति संबंधणिजं । पुव्विल्लबारहगाहाओ अद्धाणमप्पाबहुए पडिबद्धगाहाओ च सुत्तं चेव; गुणहरमुहविणिग्गयत्तादो। तासिं सुत्तसण्णामकाऊण एत्तो उवरिमगाहाणं सुत्तसण्णा किमहं कीरदे ? एत्तो उवरिमगाहाओ कसायपाहुडस्स पण्णारसअत्थाहियारेसु पडिबद्धाओ, पुव्वुत्तबारहगाहाओ अद्धापरिमाणणिदेसगाहाओ च सयलाहियारसाहारणत्थपरूवणादो ण तत्थ पडिवद्धाओ त्ति जाणावणटं । 'सं' इदि विसेसणं किमह उच्चदे ? णिरुद्धदोसाणुसंगेण अवयारो कीरदि त्ति जाणावणहं । अल्पबहुत्वका कथन करती हैं, इसलिये इनका भी पन्द्रह अर्थाधिकारोंके मूल विषयसे कोई सम्बन्ध नहीं है। तथा नामनिर्देश करनेवाली दो गाथाएं पन्द्रह अर्थाधिकारोंके नामोंका उल्लेखमात्र करती हैं, इसलिये इनका भी पन्द्रह अर्थाधिकारोंके प्रतिपाद्य विषयसे कोई सम्बन्ध नहीं है, इस बातका विचार करके यतिवृषभ आचार्यने 'पेज्जं वा दोसो वा' इत्यादि गाथाके पहले 'एत्तो सुत्तसमोदारो' यह चूर्णिसूत्र कहा है, क्योंकि पन्द्रह अर्थाधिकारोंमेंसे पेजदोसविहत्ती नामक पहले अर्थाधिकारके प्रतिपाद्य विषयका यहींसे प्रारंभ होता है। इसके पहले जो कुछ कहा गया है वह विषयकी उत्थानिकामात्र है।।
६३३२. सूत्र में आये हुए 'एत्तो' पदका अर्थ 'इस अल्पबहुत्वके ऊपर' ऐसा होता है। जिससे ऐसा अर्थ कर लेना चाहिये कि इस अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारके उपर 'सुत्तसमोदारों सूत्रका अवतार होता है।
शंका-पन्द्रह अधिकारोंमेंसे किस अधिकारमें कितनी गाथाएं हैं इसका कथन करनेवाली पहलेकी बारह गाथाएं और कालोंके अल्पबहुत्वसे सम्बन्ध रखनेवाली छह गाथाएं सूत्र ही हैं, क्योंकि ये गाथाएं गुणधर आचार्यके मुखसे निकली हैं। फिर भी इन अठारह गाथाओंको सूत्र न कहकर आगे आनेवाली गाथाओंको किसलिये सूत्र कहा है ?
समाधान-इस अल्पबहुत्वसे आगेकी गाथाएं कषायप्राभृतके पन्द्रह अर्थाधिकारोंसे सम्बन्ध रखती हैं। किन्तु पहलेकी बारह गाथाएं और अद्धापरिमाणनिर्दशसम्बन्धी छह गाथाएं समस्त अधिकारोंके साधारण अर्थका कथन करनेवाली होनेसे पन्द्रह अधिकारोंमेंसे किसी एक ही अधिकारसे सम्बन्ध नहीं रखती हैं, इस बातका ज्ञान करानेके लिये इन गाथाओंको छोड़कर शेष गाथाओंको ही सूत्र संज्ञा दी गई है।
शंका-समवतार पदमें 'सं' यह विशेषण किसलिये दिया है ?
समाधान-दोषोंके संसर्गको दूर करके सूत्रका अवतार किया जाता है, इस बातका ज्ञान करानेके लिये समवतार पदमें 'सं' विशेषण दिया है।
विशेषार्थ-यद्यपि पहले बारह संबन्ध गाथाओं, पन्द्रह अर्थाधिकारोंके नामोंका निर्देश करनेवाली दो गाथाओं और अद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली छह गाथाओं इसप्रकार
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