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एवं उत्थगाहाए अत्थो समत्तो ।
जयासहिदे कसायपाहुडे
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[ पेज्जदोसविहत्ती १
व्विाघादेदा होंति जहण्णा आणुपुव्वीए । पुवी उक्कस्सा होंति भजियव्वा ॥१६॥
तो
$ ३१६. एदाओ जहणियाओ अद्धाओ 'णिव्वाघादेण' मरणादिवाघादेण विणा घेव्वाओ त्ति भणिदं होदि । वाघादे संते पुण एगसमओ वि कत्थ वि संभवदि । 'आणुपुवीए' एदाणि उत्तपदाणि आणुपुव्वीए भणिदाणि । एत्तो उवरि जाणि पदाणि Tataण ताण 'अणाणुपुव्वीए' परिवादीए विणा 'भजियव्वा' वत्तव्वाणि होंतिि विशेष अधिक है । इसप्रकार चौथी गाथाका अर्थ समाप्त हुआ ।
ऊपर चार गाथाओं द्वारा कहे गये ये अनाकार उपयोगादिके जघन्य काल व्याघात के बिना अर्थात् व्याघातसे रहित अवस्थामें होते हैं और इन्हें इसी आनुपूर्वी से ग्रहण करना चाहिये । इसके आगे जो उत्कृष्ट कालके स्थान कहनेवाले हैं वे आनुपूर्वीके बिना समझने चाहियें ॥ १६ ॥
विशेषार्थ - ऊपर चार गाथाओं द्वारा दर्शनोपयोगसे लेकर क्षपक जीव तक स्थानों में जघन्य काल कह आये हैं । ये अपने पूर्ववर्ती स्थानोंकी अपेक्षा उत्तरवर्ती स्थानों में सविशेष होते हैं इसलिये आनुपूर्वीसे कहे गये समझना चाहिये । इनके आगे इन्हीं उपर्युक्त स्थानोंके जो उत्कृष्ट काल कहे गये हैं, वे आनुपूर्वीके बिना कहे गये हैं । इसका यह तात्पर्य है कि इन स्थानोंके उत्कृष्ट कालका विचार करते समय कुछ स्थानोंका उत्कृष्ट काल अपने पूर्ववर्ती स्थानों के उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा दूना है और कुछ स्थानोंका उत्कृष्ट काल अपने पूर्ववर्ती स्थानों के उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा सविशेष है अतः वहां सविशेषत्व या द्विगुणत्व इनमें से किसी एककी अपेक्षा कालकी आनुपूर्वी संभव नहीं है, अतः ये स्थान आनुपूर्वीके बिना ही समझना चाहिये | यहां आनुपूर्वीका विचार स्थानोंकी अपेक्षा न करके कालकी अपेक्षा किया गया है | अतः उक्त स्थानों के जघन्य कालमें जिसप्रकार कालकी अपेक्षा आनुपूर्वी संभव है उस प्रकार उक्त स्थानों के उत्कृष्ट कालमें वह संभव नहीं, क्योंकि जघन्य स्थानोंकी तरह उत्कृष्ट सभी स्थान सविशेष न होकर कुछ स्थान सविशेष हैं और कुछ स्थान दूने हैं । स्थानकी अपेक्षा तो जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकारके स्थानोंका एक ही क्रम है उसमें कोई अन्तर नहीं |
$३१६. ये ऊपर कहे गये जघन्य काल निर्व्याघातसे अर्थात् मरणादिरूप व्याघात के बिना ग्रहण करना चाहिये अर्थात् जब किसी प्रकारकी विघ्न-बाधा नहीं आती है उस अवस्था में उक्त काल होते हैं ऐसा उक्त कथनका अभिप्राय है । व्याघातके होने पर तो किसी भी स्थानमें एक समय भी काल संभव है । ये ऊपर कहे गये स्थान आनुपूर्वीसे कहे गये हैं । इसके ऊपर जो उत्कृष्ट स्थान हैं वे अनानुपूर्वी अर्थात् परिपाटीके बिना कहने के योग्य
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