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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती ? विसेसाहिओ । एदस्स विसेसाहियत्तं कुदो णव्वदे ? 'सेसा हु सविसेसा' त्ति वयणादो। एसो अत्थो विसेसाहियहाणे सव्वत्थ वत्तव्यो। घाणिदियणाणुक्कस्सकालो विसेसाहिओ। जिभिंदियणाणुक्कस्सकालो विसेसाहिओ। मणजोगुक्कस्सकालो विसेसाहिओ। वचिजोगुक्कस्सकालो विसेसाहिओ। कायजोगुक्कस्सकालो विसेसाहियो । पासिंदियणाणुकस्सकालो विसेसाहियो। अवायणाणुक्कस्सकालो दुगुणो । दुगुणत्तं कुदो णव्वदे ? छठगाहासुत्तादो। ईहाणाणुकस्सकालो विसेसाहियो । सुदणाणुक्कस्सकालो दुगुणो । एदस्स दुगुणत्तं छहगाहासुत्तादो णायव्वं । उस्सासस्स उक्कस्सकालो विसेसाहियो । तब्भवत्थकेवलीणं केवलणाणदंसणाणं सकसायसुक्कलेस्साए च उक्कस्सकालो सत्थाणे
चक्षुज्ञानोपयोगके उत्कृष्ट कालसे श्रोत्रज्ञानोपयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है।
शंका-चक्षुज्ञानोपयोगके उत्कृष्ट कालसे श्रोत्रज्ञानोपयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-इसी छठे गाथासूत्रमें आए हुए सेसा हु सविसेसा' पदसे जाना जाता है कि चक्षुज्ञानोपयोगके उत्कृष्टकालसे श्रोत्रज्ञानोपयोगका उत्कृष्टकाल विशेष अधिक है।
इसप्रकार अन्य जिन स्थानोंका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक हो वहां सर्वत्र यही अर्थ कहना चाहिये।
श्रोत्रज्ञानोपयोगके उत्कृष्ट कालसे घ्राणेन्द्रियजन्य ज्ञानोपयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। उससे जिह्वाइन्द्रियजन्य ज्ञानोपयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। उससे मनोयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। उससे वचनयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। उससे काययोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है । उससे स्पर्शनइन्द्रियजन्य ज्ञानोपयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। उससे अवायज्ञानका उत्कृष्ट काल दूना है।
शंका-स्पर्शनइन्द्रियजन्य ज्ञानोपयोगसे अवायज्ञानका उत्कृष्ट काल दूना है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-इसी छठे गाथासूत्रसे जाना जाता है कि स्पर्शनेन्द्रियजन्य ज्ञानोपयोगके उत्कृष्ट कालसे अवायज्ञानका उत्कृष्ट काल दुगुना है।
अधायज्ञानोपयोगके उत्कृष्ट कालसे ईहाज्ञानोपयोगका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। इससे श्रुतज्ञानोपयोगका उत्कृष्ट काल दूना है । ईहाज्ञानके उत्कृष्ट कालसे श्रुतज्ञानका उत्कृष्ट काल दूना है यह छठे गाथासूत्रसे जानना चाहिये । श्रुतज्ञानके उत्कृष्ट कालसे श्वासोच्छ्वासका उत्कृष्टकाल विशेष अधिक है। तद्भवस्थकेवलीके केवलज्ञान और केवलदर्शनका तथा कषायसहित जीवके शुक्ल लेश्याका उत्कृष्ट काल अपने अपने स्थानमें समान
(१)-ओ चक्खुणाणोवजोगस्स मण-अ० । (२)-लो विसेसाहियो सुदुगुणो स०।।
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