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गा० १३-१४ ] कसाए णिक्वेवपरूवणा
३२१ ६२८६.णाणाजीवे पडुच्च सव्वकालं कसाओ। एगजीवं पडुच्च सामण्णकसायस्स तिण्णि भंगा, कसायविसेसस्स पुण जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । अहवा, जहण्णेण एगसमओ । कुदो ? मरणवाघादेहितो । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । कुदो ? चउण्हं कसायाणमुक्कस्सहिदीए अंतोमुहुत्तपरिमाणत्तादो । ___* कइविहो कसाओ ?
६२८६. नाना जीवोंकी अपेक्षा कषाय सदा पाई जाती है। एक जीवकी अपेक्षा कषायसामान्यके अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त ये तीन विकल्प हैं। तथा एक जीवकी अपेक्षा कषायविशेषका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अथवा, कषायविशेषका जघन्यकाल एक समय है, क्योंकि मरण और व्याघातकी अपेक्षा एक समयवर्ती भी कषाय पाई जाती है। तथा कषायविशेषका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि चारों कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्महूर्त प्रमाण पाई जाती है।
विशेषार्थ-'कषाय कितने काल तक रहती है' इसके द्वारा कषायकी स्थिति कही गई है । नाना जीवोंकी अपेक्षा और एक जीवकी अपेक्षा इसप्रकार कषायकी स्थितिका कथन दो प्रकारसे किया जाता है । तथा सामान्य और विशेषकी अपेक्षा कषाय दो प्रकारकी है । ये दोनों प्रकारकी कषायें नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा पाई जाती हैं । अर्थात् अनादि कालसे लेकर अनन्त कालतक ऐसा एक भी कालका क्षण नहीं है जिसमें कषायसामान्यका
और कषायविशेष क्रोधादिका अभाव कहा जा सके। सर्वदा ही अनन्त जीव क्रोधादि चारों कषायोंसे युक्त पाये जाते है । इसप्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा कषायविशेषका सद्भाव जब सर्वदा पाया जाता है तो कषायसामान्यका सद्भाव सर्वदा पाया जाना अवश्यंभावी है। एक जीवकी अपेक्षा कषायसामान्यके कालका विचार करने पर उसके अनादि-अनन्त, अनादिसान्त और सादिसान्त ये तीन भेद हो जाते हैं। कषायसामान्यका अनादि-अनन्त काल अभव्य जीवकी अपेक्षासे होता है। अनादि-सान्त काल, जो भव्य जीव उपशमश्रेणी पर न चढ़ कर केवल क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ हो कर क्षीणकषाय हो गया है, उसके होता है, तथा सादि-सान्त काल उपशमश्रेणीसे गिरे हुए जीवके होता है । तथा एक जीवकी अपेक्षा कषायविशेषका काल एक तो मरण और व्याघातके बिना और दूसरे मरण और व्याघातकी अपेक्षा इसतरह दो प्रकारसे होता है। मरण और व्याघातके बिना प्रत्येक जीवके क्रोध, मान, माया और लोभमेंसे प्रत्येकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही होता है जिसका आगे अद्धापरिमाणका निर्देश करते समय व्याख्यान किया है । पर मरण और व्याघातकी अपेक्षा प्रत्येक कषायका जघन्य काल एक समय भी पाया जाता है।
* कषाय कितने प्रकारकी है ? (१) कदिवि-आ०। ४१
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