Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [पेज्जदोसविहत्ती ६२८७. कसाय-णोकसायमेएण दुविहो, पंचवीसविहो वा । * एत्तिए।
६ २८८. जहा कसाए अहियारा परूविदा तहा पेजदोसेसु वि एचिया चेव परूवेयव्वा, अण्णहा तण्णिण्णयाणुववत्तीदो।
* पाहुडं णिक्विवियव्वं । ६२८६. किमहं णिक्खिप्पदे १ पेजदोसकसायाणमंतेहिदपाहुडसद्ददृणिण्णयहूं ।
* णामपाहुडं ढवणपाहुडं दव्वपाहुडं भावपाहुडं चेदि, एवं चत्तारि णिक्खेवा एत्थ होति ।
६२६०. जेणेदं सुत्तं देसामासियं तेण अण्णे वि णिक्खेवा बुद्धिमंतेहि आइरिएहि एत्थ कायव्वा ।
२६१. णाम-हवण-आगमदव्व-णोआगमदव्वजाणुगसरीर-भवियदव्वणिक्खेवा १२८७. कषाय और नोकषायके भेदसे कषाय दो प्रकारकी है। अथवा, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ तथा संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ ये सोलहकषाय तथा हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद ये नौ नोकषाय, इसप्रकार कषाय पच्चीस प्रकारकी है। ___ * पेज और दोषका भी इतने ही अधिकारोंद्वारा वर्णन करना चाहिये ।
२८८. जिसप्रकार कषायमें छह अधिकारोंका कथन किया है उसीप्रकार पेज्ज और दोषके विषयमें भी इतने ही अधिकारोंका कथन करना चाहिये, अन्यथा पेज्ज और दोषका निर्णय नहीं हो सकता है।
* पाहुडका निक्षेप करना चाहिये ।
२८६. शंका-यहां पर पाहुडका निक्षेप किसलिये किया जाता है ?
समाधान-पेजदोषपाहुड और कषायपाहुडके अन्तमें स्थित पाहुड शब्दके अर्थका निर्णय करनेके लिये यहां पर पाहुडका निक्षेप किया है।
* नामपाहुड, स्थापनापाहुड, द्रव्यपाहुड और भावपाहुड इसप्रकार पाहुडके विषयमें चार निक्षेप होते हैं।
२१०. चूंकि यह सूत्र देशामर्षक है इसलिये बुद्धिमान आचार्योंको यहां पर इन चार निक्षेपोंके अतिरिक्त अन्य निक्षेप भी कर लेने चाहिये।
६२६१. नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप, आगमद्रव्यनिक्षेप, नोआगमद्रव्यनिक्षेपके भेद ज्ञायकशरीर और भावी ये सुगम हैं इसलिये उनके स्वरूपको न कहकर नोकर्मतव्यतिरिक्त
(१)-णमवुत्तेट्ठिद्-स०।-णमउत्तिट्ठिद्-अ०, आ० ।
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