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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ पेज्जदोसविहत्ती १ भावेण दव्वस्स अभावप्पसंगादो। किं तं दव्वलक्खणं ? तिकालगोयराणंतपजायाणं विस्ससाए अण्णोण्णाजहउत्ती दव्वं । अत्रोपयोगी श्लोकः
"नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः ।
अविभ्राड्भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा ॥१२५॥" तम्हा दव्वम्मि अवुत्तासेसधम्माणं घडावण? सियासदो जोजेयव्यो। सुत्ते किमिदि ण पउत्तो ? ण; तहापइंजासयस्स पओआभावे वि तदत्थावगमो अत्थि त्ति दोसाभावादो। उत्तं च-"तथाप्रतिज्ञाशयतोऽप्रयोगः ॥१२६॥” इति ।
६२७३. एत्थ सत्तभंगी जोजेयव्वा । तं जहा, 'सिया कसाओ, सियाणो कसाओ' एत्थतणसियासदो [णोकसायं] कसायं कसाय-णोकसायविसयअत्थपञ्जाए च दव्वम्मि भी अभावका प्रसंग प्राप्त होता है।
शंका-वह द्रव्यका लक्षण क्या है ?
समाधान-त्रिकालवर्ती अनन्त पर्यायोंका स्वभावसे ही एक दूसरेको न छोड़कर रहने रूप जो तादात्म्यसम्बन्ध है वह द्रव्य है । इस विषयमें यहाँ उपयोगी श्लोक देते हैं
"जो नैगमादिनय और उनकी शाखा उपशाखारूप उपनयोंके विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायोंका परस्पर अभिन्न संबन्धरूप समुदाय है उसे द्रव्य कहते हैं। वह द्रव्य कथंचित् एक और कथंचित् अनेक है ॥१२५॥"
इसलिये द्रव्यमें अनुक्त समस्त धर्मोके घटित करनेके लिये 'स्यात्' शब्दका प्रयोग करना चाहिये।
शंका-रसकसाओ' इत्यादि सूत्रमें स्यात् शब्दका प्रयोग क्यों नहीं किया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि स्यात् शब्दके प्रयोगका अभिप्राय रखने वाला वक्ता यदि स्यात् शब्दका प्रयोग न भी करे तो भी उसके अर्थका ज्ञान हो जाता है अतएव स्यात् शब्दका प्रयोग नहीं करने पर भी कोई दोष नहीं है। कहा भी है
"स्यात् शब्दके प्रयोगकी प्रतिज्ञाका अभिप्राय रहनेसे 'स्यात्' शब्दका अप्रयोग देखा जाता है ॥१२६॥"
६२७३. यहाँ सप्तभंगीकी योजना करनी चाहिये। वह इसप्रकार है-(१) द्रव्य स्यात् कषायरूप है, (२) द्रव्य स्यात् अकषायरूप है। इन दोनों भंगोंमें विद्यमान स्यात् शब्द क्रमसे नोकषाय और कषायको तथा कषाय और नोकषायविषयक अर्थपर्यायोंको द्रव्यमें
(१)-उत्ति दव्वं अ०, आ० । (२) आप्तमी० श्लो० १०७ । (३) युक्त्यनु० श्लो० ४५ । तुलना"अप्रयुक्तोऽपि सर्वत्र स्यात्कारोऽर्थात् प्रतीयते । विधौ निषेधेप्यन्यत्र कुशलश्चेत् प्रयोजकः ॥"-लघी० श्लो. ६३॥ “सोऽप्रयुक्तोपि वा तज्ज्ञैः सर्वत्रार्थात् प्रतीयते। यथैवकारोऽयोगादिव्यवच्छेदप्रयोजनः॥"-तत्त्वार्थलो. पृ० १३७ । (४) सत्तहंगी स० ।
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