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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पेज्जदोसविहत्ती ? तं कुदो णव्वदे ? पेजदोसाणं दोहं पि एगीकरणण्णहाणुववत्तीदो।
___२०८. पेज्जदोससण्णा वि णयणिप्पण्णा चेय, एवंभूदणयाहिप्पारण तप्पउत्तिदसणादो त्ति णासंकणिज्जं; णयणिबंधणते वि अभिवाहरणविसेस (सं) विवक्खिय पुध परूवणादो।
२०६. पेज्जदोसकसायपाहुडसद्देसु अणेगेसु अत्थेसु वट्टमाणेसु संतेसु अपयदत्थनिराकरणदुवारेण पयदत्थपरूवणटं णिक्खेवसुत्तं भणदि
___ * तत्थ पेजं णिक्खिवियव्वं-णामपेजं ढवणपेजं दव्यपेजं भावपेजं चेदि॥ हैं। यह कषायप्राभृत संज्ञा नयकी अपेक्षा बनी है, क्योंकि द्रव्यार्थिक नयका आलंबन लेकर यह संज्ञा उत्पन्न हुई है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है कि यह संज्ञा द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा उत्पन्न हुई है ?
समाधान-यदि यह संज्ञा द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षासे न मानी जाय तो पेज और दोष इन दोनोंका एक कषायशब्दके द्वारा एकीकरण नहीं किया जा सकता है।
विशेषार्थ-चूंकि पेज और दोष ये दोनों विशेष हैं और कषाय सामान्य है, क्योंकि कषायका पेज और दोष दोनोंमें अन्वय पाया जाता है, अतः कषायप्राभृत संज्ञाको द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा उत्पन्न हुई समझना चाहिये ।
२०८. शंका-पेजदोष यह संज्ञा भी नयका आलम्बन लेकर ही उत्पन्न हुई है, क्योंकि एवंभूत नयके अभिप्रायसे इस संज्ञाकी प्रवृत्ति देखी जाती है।
समाधान-ऐसी आशंका करना भी ठीक नहीं है, क्योंकि पेज्जदोष संज्ञा यद्यपि नयनिमित्तक है तो भी अभिव्याहरण विशेषकी विवक्षासे पेज और दोषसंज्ञाका पृथक् पृथक निरूपण किया है।
विशेषार्थ-यद्यपि पेजदोष यह संज्ञा एवंभूतनय या समभिरूढ़नयकी अपेक्षा उत्पन्न हुई है, क्योंकि पेजसे रागें और दोषसे द्वेष लिया जाता है फिर भी वृत्तिसूत्रकारने पेजदोष यह संज्ञा अभिव्याहरणनिष्पन्न कही है, इसलिये नयकी अपेक्षा इसका विचार नहीं किया गया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
६ २०१. पेज, दोष, कषाय और प्राभृत, ये शब्द अनेक अर्थोंमें पाये जाते हैं, इसलिये अप्रकृत अर्थके निषेध द्वारा प्रकृत अर्थका कथन करनेके लिये निक्षेपसूत्र कहते हैं
* उनमेंसे नामपेज, स्थापनापेज, द्रव्यपेज और भावपेज इसप्रकार पेजका निक्षेप करना चाहिये ॥
(१)-णत्तैण वि स । (२) “स किमर्थः अप्रकृतनिराकरणाय प्रकृतनिरूपणाय च ।"-सर्वार्थसि० ११५ । लघी० रववृ० पृ० २६ । (३) तुलना-"रज्जति तेण तम्मि वा रंजणमहवा निरूविओ राओ। नामाइचउभेओ दव्वे कम्मेयरवियप्पो॥"-वि० भा० गा० ३५२८ ।
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