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गो०१३-१४] कसाए णिक्खेवपरूवणा
२८३ * कसाओ ताव णिक्विवियव्वो णामकसाओ ठवणकसाओ दव्वकसाओ पञ्चयकसाओ समुप्पत्तियकसाओ आदेसकसाओ रसकसाओ भावकसाओ चेदि।
६ २३५. णिक्खेवत्थं मोत्तूण कसायसामियणयाणं परूवणं ताव कस्मामो । कुदो ? अण्णहा णिक्खेवत्थावगमाणुववत्तीदो।
* गेमो सव्वे कसाए इच्छदि।
$ २३६. कुदो ? संगहासंगहसरूवणेगमम्मि विसयीकयसयललोगववहारम्मि सव्वकसायसंभवादो।
* संगैहववहारा समुप्पत्तियकसायमादेसकसायं च अवणेति । ६ २३७. किं कारणं ? समुप्पत्तियकसायस्स पच्चयकसाए अंतब्भावादो । कुदो ?
* नामकषाय, स्थापनाकषाय, द्रव्यकषाय, प्रत्ययकषाय, समुत्पत्तिककषाय, आदेशकषाय, रसकषाय और भावकषाय इसप्रकार कषायका निक्षप करना चाहिये।
६२३५. इस निक्षेपसूत्रके अर्थको छोड़कर किस कषायका कौन नय स्वामी है इसका प्ररूपण करते हैं, क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया जायगा तो निक्षेपके अर्थका ज्ञान नहीं हो सकता है।
* नैगमनय सभी कषायोंको स्वीकार करता है। ६ २३६. शंका-नैगमनय सभी कषायोंको क्यों स्वीकार करता है ?
समाधान-नैगमनय भेदाभेदरूप है और समस्त लोकव्यवहारको विषय करता है, इसलिये उसमें नामकषाय आदि सभी कषायें सम्भव हैं।
* संग्रहनय और व्यवहारनय समुत्पत्तिककषाय और आदेशकषायको स्वीकार नहीं करते हैं।
६२३७. शंका-इसका क्या कारण है ?
समाधान-क्योंकि समुत्पत्तिककषायका प्रत्ययकषायमें अन्तर्भाव हो जाता है । अतः इन दोनों नयोंकी अपेक्षा समुत्पत्तिक नामकी अलग कषाय नहीं है ।
(१) “णामं ठवणा दविए उप्पत्ती पच्चए य आएसो। रसभावकसाए य तेण य कोहाइया चउरो॥"-आचा० नि० गा० १९०। विशेषा० गा० २९८०। (२) तुलना-"भावं सद्दाइनया अविहमसुद्धनेगमाईया । आएसुप्पत्तीओ सेसा जं पच्चयविगप्पा ॥=शब्दादिनया भावकषायमेवैकमिच्छन्ति निरुपचरितत्वात् नाघस्त्यान् सप्त, तथा नेगमादीया नैगमव्यवहारसंग्रहा अविशुद्धा ये तेऽष्टविधमपि । तथा शेषाः शुद्धनगमव्यवहारसंग्रहा ऋसूत्रश्च नादेशोत्पत्तिकषायद्वयमिच्छन्ति । किं कारणमित्याह-यत् यस्मात्तौ प्रत्ययविकल्पौ प्रत्ययकषायात् मध्यमादभिन्नौ बन्धकारणाज्जायमानत्वाविशेषात् ।"-विशेषा० को गा० ३५५४। "तत्र नैगमस्य सामान्यविशेषरूपत्वात् नैकगमत्वाच्च तदभिप्रायेण सर्वेऽपि साधवो नामादयः ।"-आचा० नि शी० गा० १९०। (३) "संग्रहव्यवहारौ तु कषायसम्बन्धाभावाद् आदेशसमुत्पत्ती नेच्छतः।"-आचा० नि० शी० गा० १९॥
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