________________
२८२
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* तं जहा ।
s २३२. केण दोसेण दव्वमुवभोगं ण गच्छदि त्ति देण पुच्छा कदा | * सादियाए अग्गिदद्धं वा मूसयभक्खियं वा एवमादि ।
६२३३. अग्गिदद्धं अग्गिदहणं, मूसयभक्खियं मूसयभक्खणमिदि वत्तव्यं ? कुदो ? भावसाहणम्मि दोहं सहाणं णिप्पत्तिदंसणादो । एदं देसामासियवयणं । तं कुदो णव्वदे ? 'एवमादि' वयणादो । सादियाए अग्गिदाहो मूसयभक्खणं च दोसो त्ति कुदो णच्वदे ? दद्धसादियपरिहिय म्हेलियाए दोहग्गालच्छिसमागमदंसणादो ।
* भावदोसो ट्ठवणिजो ।
s २३४. केण कारण ? गंथबहुत्तभरण |
[ पेज्नदोस विहत्ती १
दोषके कारण द्रव्य उपभोगको प्राप्त नहीं होता है उस दोषको बतलानेके लिये पृच्छासूत्र कहते हैं
* वह उपघात दोष कौनसा है ।
$ २३२. किस दोष से द्रव्य उपभोगको नहीं प्राप्त होता है, इस सूत्र के द्वारा इसप्रकारकी पृच्छा की गई है ।
साड़ीका अग्नि से जल जाना अथवा चूहोंके द्वारा खाया जाना तथा इसीप्रकार और दूसरे भी उपघात दोष हैं ।
१२३३. इस सूत्र में अग्निदग्धका अर्थ अनिके द्वारा जल जाना और मूषक भक्षितका अर्थ मूषकोंके द्वारा खाया जाना करना चाहिये, क्योंकि दग्ध और भक्षित इन दोनों शब्दोंकी भावसाधनमें निष्पत्ति देखी जाती है । 'सादियाए अग्गिदद्धं वा मूसयभक्खियं वा एवमादि' यह वचन देशामर्षक है ।
शंका- यह कैसे जाना कि यह सूत्रवचन देशामर्षक है ?
समाधान - सूत्र में आये हुए 'एवमादि' पदसे जाना जाता है कि यह वचन देशामक है ।
शंका- साड़ीका अग्निसे जल जाना और चूहोंके द्वारा खाया जाना दोष है यह कैसे जाना ?
समाधान - जो स्त्री जली हुई साड़ीको पहनती है उसके दुर्भाग्य और अलक्ष्मीका समागम देखा जाता है, इससे जाना जाता है कि साड़ीका अग्निसे जल जाना आदि दोष है । * भावदोषका कथन स्थगित करते हैं।
Jain Education International
१२३४. शंका - भावदोषका कथन स्थगित क्यों करते हैं ?
समाधान- उसके कथन करनेसे ग्रन्थके बहुत बढ़ जानेका भय है ।
(१) ता० प्रतौ अत्र सूत्रसूचकं चिह्नं नास्ति ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org