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गा० १३-१४] दोसे णिक्खेवपरूवणा
२७६ सयलो वि उच्छिादि त्ति चे होदु तदुच्छेदो, किन्तु णयस्स विसओ अम्मेहि परूविदो। सव्व (संह) स्थणिरवेक्खा अत्थणया त्ति कथं णव्वदे ? लिंग-संखा-कालकारय-पुरिसुवग्गहेसु वियहिचारदसणादो । कथं पजवष्टिए उजुसुदे दव्वणिक्खेवस्स सम्भवो ? ण; अप्पिदवंजणपजायस्स वट्टमाणकालभंतरे अणेगेसु अत्थवंजणपजाएसु संचरंतवत्थूवलम्भादो।।
* सद्दणयस्स णामं भावो च ।
६२२६. अणेगेसु घडत्थेसु दव्व-खेत्त-काल-भावेहि पुधभूदेसु एको घडसहो वट्टमाणो उपलब्भदे, एवमुवलब्भमाणे कथं सद्दणए पञ्जवहिए णामाणिक्खेवस्स संभवो त्ति? ण; एदम्मि णए तेसिं घडसहाणं दव्व-खेत्त-काल-भाववाचियभावेण भिण्णाणमण्णयाअसत्य मानना पड़ेगा, और शब्द व्यवहारको असत्य मानने पर समस्त लोकव्यवहारका व्युच्छेद हो जायगा ?
समाधान-यदि इससे समस्त लोकव्यवहारका उच्छेद होता है तो होओ किन्तु यहाँ हमने नयके विषयका प्रतिपादन किया है।
शंका-अर्थनय शब्दार्थकी अपेक्षाके बिना प्रवृत्त होते हैं, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-क्योंकि अर्थनयोंकी अपेक्षा लिङ्ग, संख्या, काल, कारक, पुरुष और उपग्रह इनमें व्यभिचार देखा जाता है अर्थात् अर्थनय शब्दनयकी तरह लिङ्गादिकके व्यभिचारको दोष नहीं मानता और लिङ्गादिकका भेद होते हुए भी वह पदार्थको भेदरूप ग्रहण नहीं करता। इससे जाना जाता है कि अर्थनय शब्दार्थकी अपेक्षा नहीं करके ही प्रवृत्त होते हैं। __ शंका-ऋजुसूत्र पर्यायार्थिकनय है, अतः उसमें द्रव्यनिक्षेप कैसे.संभव है ?
" समाधान-नहीं, क्योंकि व्यञ्जनपर्यायकी मुख्यतासे ऋजुसूत्रनय वर्तमानकालके भीतर अनेक अर्थपर्याय और व्यञ्जनपर्यायोंमें सञ्चार करते हुए पदार्थका ग्रहण करता है, इसलिये ऋजुसूत्र नयमें द्रव्यनिक्षेप सम्भव है।
* नामनिक्षेप और भावनिक्षेप शब्दनयका विषय है।
६२२६. शंका-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा भिन्न भिन्न अनेक घटरूप पदार्थों में एक घट शब्द प्रवृत्त होता हुआ पाया जाता है। जब कि घट शब्द इसप्रकार उपलब्ध होता है और शब्दनय पर्यायार्थिक नयका भेद है, तब शब्दनयमें नामनिक्षेप कैसे सम्भव है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि इस नयमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप वाचकभावसे भेदको प्राप्त हुए उन अनेक घट शब्दोंका परस्पर अन्वय नही पाया जाता है। अर्थात् यह नय द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके भेदसे प्रवृत्त होनेवाले घट शब्दोंको भिन्न मानता
(१) ण एदं हि णए देसि स० ।
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