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गा० १३-१४ ] पेज्जे णिक्खेवपरूवणा
२७१ पुरिस-णqसयवेद-हस्स रइ-माया-लोह-भेएण । कथं कम्माणं पेजत्तं ? आहादनहेतुत्वात् । एवमेदेसिं णिक्खेवाणमत्थो सुगमो त्ति कटु जइवसहाइरिएण ण वुत्तो।
२१८. संपहि उत्तरणिक्खेवणहप (व-प-) रूवणष्टं सुत्तं भणदि
* णोआगमदव्वपेजं तिविहं-हिंदं पेजं, सुहं पेजं, पिय पेशं । गच्छगा च सत्तभंगा।
___ २१६. व्याध्युपशमनहेतुर्द्रव्यं हितम् । यथा पित्तज्वराभिभूतस्य तदुपशमनहेतुकटुकरोहिण्यादिः । जीवस्य आल्हादनहेतुर्द्रव्यं सुखम् , यथा क्षुत्तृडार्तस्य मृष्टौदनशीतोदके । एते प्रिये अपि भवत इति चेत् न, तृड्वर्जितस्य एतयोरुपरि रुचेरभावात् तत्रार्पणाभावाद्वा । स्वरुचिविषयीकृतं वस्तु प्रियम् , यथा पुत्रादिः। एवमुक्तास्त्रयो भङ्गाः।
६२२०. साम्प्रतं द्विसंयोग उच्यते । तद्यथा, द्राक्षाफलं हितं सुखञ्च, पित्तज्वराभिऔर लोभके भेदसे सात प्रकारका है।
शंका-स्त्रीवेद आदि कर्मोंको पेज्ज कैसे कहा जा सकता है ?
समाधान-क्योंकि ये स्त्रीवेद आदि कर्म प्रसन्नताके कारण हैं, इसलिये इन्हें पेज्ज कहा गया है।
इसप्रकार इन पूर्वोक्त निक्षेपोंका अर्थ सरल है, ऐसा समझकर यतिवृषभाचार्यने इनका अर्थ नहीं कहा है।
२१८. अब आगेके निक्षेपका प्ररूपण करनेके लिये सूत्र कहते हैं
* नोकर्म तद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यपेज्ज तीन प्रकारका है-हितपेज्ज, सुखपेज्ज और प्रियपेज्ज । इन तीनों स्थानोंके सात भङ्ग होते हैं।
६२१६. व्याधिके उपशमनका कारणभूत द्रव्य हित कहलाता है । जैसे, पित्तज्वरसे पीड़ित पुरुषके पित्तज्वरकी शान्तिका कारण कड़वी कुटकी तूंवड़ी आदिक द्रव्य हितरूप हैं। जीवके आनन्दका कारणभूत द्रव्य सुख कहलाता है। जैसे, भूख और प्याससे पीड़ित पुरुषको सुधे बिने चावलोंसे बनाया गया भात और ठंडा पानी सुखरूप है।
शंका-शुद्ध भात और ठंडा पानी प्रिय भी हो सकते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि जो भूखा और प्यासा नहीं है उसकी इन दोनोंमें रुचि नहीं पाई जाती है, इसलिये इन्हें यहाँ प्रिय द्रव्य नहीं कहा है। अथवा, यहाँ शुद्ध भात और ठंडे पानीमें प्रियरूप द्रव्यकी विवक्षा नहीं की है।
जो वस्तु अपनेको रुचे उसे प्रिय कहते हैं। जैसे, पुत्र आदि। इसप्रकार तीन भङ्ग कह दिये।
६२२०. अब द्विसंयोगी भङ्ग कहते हैं वे इसप्रकार हैं-दाख हितरूप भी है और सुखरूप भी है, क्योंकि वह पित्तज्वरसे पीड़ित पुरुषके स्वास्थ्य और आनन्द इन दोनोंका कारण देखी जाती है।
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