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गा०१३-१४ ] णयपरूवणं
२२३ सर्व वस्तु इयर्ति एति गच्छति इत्यर्थनयः । ऋजुसूत्रवचनविच्छेदोपलक्षितस्य वस्तुनः वाचकभेदेन भेदको व्यजननयः।
१८५. ऋजु प्रगुणं सूत्रयति सूचयतीति ऋजुसूत्रः। अस्य विषयः पच्यमानः पक्कः। नय अभेदरूपसे समस्त वस्तुको ग्रहण करता है वह अर्थनय है। तथा वर्तमानकालसे उपलक्षित वस्तुमें वाचक शब्दके भेदसे भेद करनेवाला व्यंजननय है।
विशेषार्थ-अर्थप्रधान नय अर्थनय और शब्दप्रधान नय शब्दनय या व्यञ्जननय कहे जाते हैं । यद्यपि दोनों ही प्रकारके नय वस्तुको ग्रहण करते हैं। फिर भी उनमेंसे अर्थनय विषयभूत पदार्थों में रहनेवाले धर्मोकी मुख्यतासे वस्तुको ग्रहण करता है और शब्दनय वाचक शब्दगत धर्मों के भेदसे विषयभूत पदार्थोंको भेदरूपसे ग्रहण करता है। यही अर्थनय और शब्दनयमें भेद है। ऊपर जो अर्थनयका स्वरूप कहा है कि वस्तुगत धर्मों के भेदसे वस्तुके स्वरूपमें भेद करनेवाला अर्थनय है अथवा अभेदरूपसे वस्तुको ग्रहण करनेवाला अर्थ नय है इसका यह तात्पर्य प्रतीत होता है कि जब संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र इसप्रकार उत्तरोत्तर भेदोंकी अपेक्षा अर्थनयका विचार करते हैं तो वह हमें वस्तुगत धर्मों के भेदसे वस्तुके स्वरूपमें भेद करनेवाला प्रतीत होता है। और जब ऋजुसूत्र, व्यवहार और संग्रह इसप्रकार विपरीत क्रमसे विचार करते हैं तो वह हमें अभेदरूपसे वस्तुको ग्रहण करने वाला प्रतीत होता है।
६ १८५. ऋजु-प्रगुण अर्थात् एक समयवर्ती पर्यायको जो सूचित करता है वह ऋजुसूत्रनय है। इस नयका विषय पच्यमान पक्क है। जिसका अर्थ कथंचित् पच्यमान गा० २७५३ । प्रमाणनय० ७।४४, ४५ । जैनतर्कभा० पृ० २३ । नयप्रदी० पृ० १०४ ।
(१) "तत्रार्थव्यञ्जनायविभिन्नलिङ्गसंख्याकालकारकपुरुषोपग्रहभेदैरभिन्नं वर्तमानमात्रं वस्त्वध्यवस्यन्तोऽर्थनयाः। न शब्दभेदेनार्थभेद इत्यर्थः ।"-ध० सं० १० ८६ । (२) "व्यञ्जनभेदेन वस्तुभेदाध्यवसायिनो व्यञ्जननयाः।'-ध० सं० पृ० ८६। (३) रिजु प्रमाणं प्रगुणं स० । (४) "ऋजु प्रगुणं सूत्रयति तन्त्रयत इति ऋजुसूत्रः"-सर्वार्थसि० ११३३ । “सूत्रपातवद् ऋजुसूत्रः"-राजवा० ११३३ । “भेदं प्राधान्यतोन्विच्छन् ऋजुसूत्रनयो मतः ।"-लघी० का० ७१ । 'ऋजुसूत्रं क्षणध्वंसि वस्तु सत्सूत्रयेदृजु । प्राधान्येन गुणीभावाद् द्रव्यस्यानर्पणात् सतः ॥"-त० श्लो० पृ० २७१। नयविव० श्लो० ७७ । प्रमेयक० १०..। नयचक्र० गा० ३८ । “पच्चुप्पन्नग्गाही उज्जुसुओ णयविही मुणेअव्वो।"-अनु० सू० १५२। आ० नि० गा० ७५७ । “सतां साम्प्रतानामर्थानामभिधानपरिज्ञानमृजुसूत्रः... आह च-साम्प्रतविषयग्राहकमजसूत्रनयं समासतो विद्यात् ।"-त० भा० ११३५। विशेषा० गा० २७।१८। ऋजु प्रगुणं सूत्रयति नयत इति ऋजसुत्रः, सूत्रपातवद् ऋजुसूत्र इति ।"-नय चक्रवृ० ५० ३५४ । “तत्र ऋजुसूत्रनीतिः स्यात् शुद्धपर्यायसंश्रिता .." -सन्मति०टी०पू०३१११ प्रमाणनय०७।२८। स्या० म०प०३१२। जैनतकंभा०प०२२॥ "भावत्वे वर्तमान त्वव्याप्तिधीरविशेषिता । ऋजुसूत्रः श्रुतः सूत्रे शब्दार्थस्तु विशेषितः ॥"-नयोप० श्लो० २९ । (५) "ऋजसूत्रविषयः प्रदश्यते-पच्यमानः पक्वः, पक्वस्तु स्यात् पच्यमानः स्यादुपरतपाक इति..."-ध० आ० १० ५४३॥ "अस्य विषयः पच्यमानः पक्वः पक्षस्तु स्यात्पच्यमानः स्यादुपरतपाक इति ।.."-राज वा० श३३।
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