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गा०१]
कम्मसरूववियारो सिद्धाणं व । सिद्धाणं वा तदो चेव अणंतणाणादिगुणा ण होज्ज । ण च एवं तहाणभुवगमादो। तदो जीवादो अभिण्णाई कम्माइं त्ति सद्दहेयव्वं ।
४१. अमुत्तेण जीवेण मुत्ताणं कम्माणं कथं संबंधो? ण; अणादिबंधणभावभुवगमादो । होज्ज दोसो जदि सादिबंधो इच्छिज्जदि । जीवकम्माणं अणादिओ बंधो त्ति कथं णव्वदे ? वट्टमाणकाले उपलब्भमाणजीवकम्मबंधण्णहाणुववत्तीदो । मुत्तो जीवो त्ति किण्ण घेप्पदे ? ण; थूलसरीरपमाणे जीवे कुढारीए छिज्जमाणे जीवबहुत्तप्पसंगादो जीवाभावप्पसंगादो वा । ण च मुत्तं दव्वं सव्वावत्थासु ण छिज्जदित्ति णियमो अत्थि; तहाणुवलंभादो। पृथक् माने हैं। अथवा, यदि संसारी जीवोंके शरीर और कर्मोंसे पृथग्भूत रहते हुए भी अनन्तज्ञानादि गुण नहीं पाये जाते हैं तो सिद्धोंके भी नहीं होने चाहिये। यदि कहा जाय कि अनन्तज्ञानादि गुण सिद्धोंके नहीं होते हैं तो मत होओ, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा नहीं माना गया है। अतः इस प्रकारकी अव्यवस्था न हो, इसलिये जीवसे कर्म अभिन्न अर्थात् एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्धको प्राप्त हैं ऐसा श्रद्धान करना चाहिये।
४१. शंका-अमूर्त जीवके साथ मूर्त कर्मोंका संबन्ध कैसे हो सकता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि जीव और कर्मोंका अनादि सम्बन्ध स्वीकार किया है । यदि सादि बंध स्वीकार किया होता तो उपर्युक्त दोष आता ।
शंका-जीव और कर्मोंका अनादिकालीन संबन्ध है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-यदि जीवका कर्मोंके साथ अनादिकालीन संबन्ध स्वीकार न किया जावे दो वर्तमान कालमें जो जीव और कर्मोंका संबन्ध उपलब्ध होता है वह बन नहीं सकता है, इस अन्यथानुपपत्तिसे जीव और कर्मोंका अनादिकालसे संबन्ध है यह जाना जाता है ।
शंका-जीव मूर्त है, ऐसा क्यों नहीं स्वीकार कर लिया जाता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि स्थूलशरीरप्रमाण जीवको कुल्हाड़ीसे काटनेपर या तो बहुत जीवोंका प्रसंग प्राप्त हो जायगा या जीवके अभावका प्रसंग प्राप्त हो जायगा, इसलिये जीव मूर्त न होकर अमूर्त है ऐसा स्वीकार करना चाहिये ।
यदि कहा जाय कि मूर्त द्रव्य अपनी सभी अवस्थाओंमें छिन्न नहीं होता है ऐसा नियम है, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि किसी भी प्रमाणसे इसप्रकारकी उपलब्धि नहीं होती है।
(१) तुलना-"कथं पुनरमूर्तस्य सम्बन्धः कर्मणेति चेत; माणिक्यादिर्न वै मूर्तिः मलसम्बन्धकारणम् । मलनिसर्गाद बध्येत जीवोऽमतिः स्वदोषतः। जीवस्य मतिं कल्पयित्वापि स्वदोषान्तरं कल्पितव्यं माणिक्यादिवत्, ततः पुनः अमूर्तस्य चेतनस्य नैसर्गिकाः मिथ्यादर्शनादयो बन्धहेतवः ।"-सिद्धिवि० ५० ४। (२) "अनादिसम्बन्धे च "-त० सू० २।४१ । पञ्चा० गा० १२८-१३०। "ततो जीवकर्मणोरनादिसम्बन्ध इत्युक्तं भवति।"-सर्वार्थ० ८।२। 'तत्कर्मागन्तुकं तस्य प्रबन्धोऽनादिरिष्यते।"-सिद्धिवि०, टी० पृ०३७३१ "बीयभूताणि कम्माणि संसारम्मि अणादिए। मोहमोहितचित्तस्स ततो कम्माण संतती॥"-ऋषि०२।५ ।
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