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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पेज्जदोसविहत्ती ? पुव्विल्लभासिदं सुभासिदमिदि दट्ठव्वं । संपहि एदाओ अट्ठबीसगाहाओ पुव्विल्लचउसहिगाहासु पक्खित्ते बाणउदिगाहासमासो होदि ६२ ।
६१३३. संपहि पण्णारसमम्मि अस्थाहियारम्मि पंढिदअट्ठावीसगाहासु केत्तियाओ सुत्तगाहाओ केत्तियाओ ण सुत्तगाहाओ त्ति पुच्छिदे असुत्तगाहापमाणपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि-का सुत्तगाहा ? सूचिदाणेगत्था । अवरा असुत्तगाहा ।
किट्टीकयवीचारे संगहणी-खीणमोहपट्ठवए।
सत्तेदा गाहाओ अण्णाओ सभासगाहारो ॥६॥ ६१३४. एदिस्से गाहाए अत्थो वुच्चदे । तं जहा, 'किट्टीकयवीचारे' त्ति भणिदे एक्कारसण्हं किट्टिगाहाणं मज्झे एक्कारसमी वीचारमूलंगाहा एका १। 'संगहणी' ति भणिदे संगहणिगाहा एक्का घेत्तव्वा १ । 'खीणमोह' इत्ति भाणदे खीणमोहगाहा एका ऐसा समझना चाहिये । चारित्रमोहनीयकी क्षपणा नामक पन्द्रहवें अर्थाधिकारसे संबन्ध रखनेवाली इन अट्ठाईस गाथाओंको चौदह अधिकारोसे संबन्ध रखनेवाली पहलेकी चौसठ गाथाओंमें मिला देने पर कुल गाथाओंका जोड़ बानवे होता है।
१३३. अब पन्द्रहवें अर्थाधिकारमें कही गईं अट्ठाईस गाथाओंमेंसे कितनी सूत्र गाथाएं हैं और कितनी सूत्रगाथाएं नहीं हैं, इसप्रकार पूछने पर असूत्र गाथाओंके प्ररूपण करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
शंका-सूत्रगाथा किसे कहते हैं ?
समाधान-जिससे अनेक अर्थ सूचित हों वह सूत्रगाथा है और इससे विपरीत अर्थात् जिसके द्वारा अनेक अर्थ सूचित न हों वह असूत्र गाथा है । आगे उनका प्रमाण बतलाते हैं
कृष्टि संबंधी ग्यारह गाथाओंमेंसे वीचारविषयक एक गाथा, संग्रहणीका प्रतिपादन करनेवाली एक गाथा, क्षीणमोहका प्रतिपादन करनेवाली एक गाथा और चारित्रमोहकी क्षपणाके प्रस्थापकसे संबंध रखनेवाली चार गाथाएं, इस प्रकार ये सात गाथाएं सूत्रगाथाएं नहीं हैं। तथा इन सात गाथाओंसे अतिरिक्त शेष इक्कीस गाथाएं सभाष्यगाथाएं अर्थात् सूत्रगाथाएं हैं ॥ ६॥ ___अब इस गाथाका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है-'किट्टीकयवीचारे' ऐसा कथन करने पर कृष्टिसंबन्धी ग्यारह गाथाओंमेंसे ग्यारहवीं वीचारसम्बन्धी एक मूल गाथा लेना चाहिये । 'संगहणी' ऐसा कथन करने पर संग्रहणीविषयक एक गाथा लेना चाहिये। 'खीणमोहे' ऐसा कथन करने पर क्षीणमोहसंबंधी एक गाथा लेना चाहिये । तथा 'पट्ठवए'
(२) पडिद-अ० । पच्छिद्द-आ०। (२) "तत्थ मूलगाहाओ णाम सुत्तगाहाओ। पुच्छामेत्तेण मूचिदाणेगत्थाओ। भासगाहा सव्वपेक्खाओ .''-जयध० आ० ५० ८९५ । (३)-णिग्गहा-अ० ।
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