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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती ? सिद्धीदो। णादीदाहियारेसु संबज्झइ; तत्थ वि एवंविहत्तादो । तम्हा 'दसणचरित्तमोहे' त्ति ण वत्तव्यमिदि सिद्धं सच्चमेवं चेव, किंतु 'दंसणचरित्तमोहे' त्ति पदपंडिवूरणं तेण ण दोसाय होदि । किं पदपडिवूरणं णाम? गाहापच्चद्धस्स अपडिवुण्णस्स पडिवूरणं पदपरिवूरणं णाम ।
* अद्धापरिमाणणिद्देसो त्ति १५।
६१६३. अद्धापरिमाणणिद्देसो णाम पण्णारसमो अत्थाहियारो । तं कथं णव्वदे ? पण्णारसअंकुवलंभादो १५।।
* एसो अत्थाहियारो पण्णारसविहो ।
$ १६४. एवमेसो पण्णारसविहो अत्थाहियारो जइवसहाइरिएण उवइटो । एदे चेव अस्सिदण चुण्णिसुत्तं पि भणिस्सदि ।
६ १६५. अहवा, पेजदोसे त्ति एक्को अत्थाहियारो १ । पयडिवहत्ती विदियो अत्थाहै। यदि कहा जाय कि पेजदोषविभक्ति आदि अतीत अधिकारोंके साथ 'दंसणचरित्तमोहे' इस पदका संबन्ध होता है सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि वहाँ पर भी यही प्रकार पाया जाता है। अर्थात् अद्धापरिमाणनिर्देशके समान वे सब अधिकार भी दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयके विषयमें हैं यह बिना कहे ही सिद्ध हो जाता है । अतः गाथासूत्र में 'दसणचरित्तमोहे' यह पद नहीं कहना चाहिये, यह निश्चित होता है ? ।
समाधान-ऊपर शंकामें जो कुछ कहा गया है वह सत्य है, क्योंकि बात तो ऐसी ही है, किन्तु 'दसणचरित्तमोहे' यह पद पादकी पूर्ति के लिये दिया गया है इसलिये कोई दोष नहीं है।
शंका-पदकी पूर्ति किसे कहते हैं ? समाधान-गाथाके अधूरे उत्तरार्धकी पदके द्वारा पूर्ति करनेको पदकी पूर्ति कहते हैं। * अद्धापरिमाणनिर्देश नामका पन्द्रहवाँ अर्थाधिकार है १५ ।
१६३. अद्धापरिमाणनिर्देश यह पन्द्रहवाँ अर्थाधिकार है। शंका-यह कैसे जाना जाता है।
समाधान-'अद्धापरिमाणणिदेसो त्ति' इस पदके अन्तमें पन्द्रहका अंक पाया जाता है, इससे जाना जाता है कि अद्धापरिमाणनिर्देश नामका पन्द्रहवाँ अर्थाधिकार है।
* इसप्रकार यह अथाधिकार पन्द्रह प्रकारका है ।
१६४. इसप्रकार इस पन्द्रह प्रकारके अर्थाधिकारका यतिवृषभ आचार्यने उपदेश दिया है । तथा इन्हीं अर्थाधिकारोंका आश्रय लेकर वे चूर्णिसूत्र भी कहेंगे।
१६५. अथवा, पेजदोष यह पहला अर्थाधिकार है। प्रकृतिविभक्ति यह दूसरा (१)-डीए णा-आ० । (२)-परिवूर-स०। (३) किं पदपडिवूरणं णाम अद्धा-अ०, आ.।
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