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गा०१३-१४]
अत्थाहियारणिदेसो हियारो २ । हिदिविहत्ती तदियो अत्थाहियारो ३ । अणुभागविहत्ती चउत्थो० ४ । पदेसविहत्ती झीणाझीण-ष्टिदिअंतियाणि च पंचमो० ५। बंधगे त्ति छटो० ६। वेदगे ति सत्तमो० ७ । उवजोगे त्ति अहमो० ८ । चउठाणे त्ति णवमो० ६ । विजणे त्ति दसमो० १०। सम्मत्ते त्ति एक्कारसमो० ११। देसविरयी त्ति बारसमो० १२। संजमे त्ति तेरसमो०१३ । उवसामणा त्ति चोदसमो०१४। खवणा त्ति पण्णारसमो अत्थाहियारो १५। दंसणचारित्तमोहे त्ति वुत्ते पुव्वमुद्दिष्टासेसपण्णारस वि अत्थाहियारा दसणचरित्तमोहेसु होति त्ति भणिदं होदि । अद्धापरिमाणणिदेसो अत्थाहियारो ण होदि सयलअत्थाहियारेसु अणुगयत्तादो । एवं तदियपयारेण पण्णारसअस्थाहियाराणं परूवणा कया । एवं चउत्थ-पंचमादिसरूवेण पण्णारस अत्थाहियारा चिंतिय वत्तव्वा । अर्थाधिकार है। स्थितिविभक्ति नामका तीसरा अर्थाधिकार है। अनुभागविभक्ति नामका चौथा अर्थाधिकार है। प्रदेश विभक्ति झीणाझीणप्रदेश और स्थित्यन्तिकप्रदेश मिलकर पांचवां अर्थाधिकार है। बन्धक नामका छठा अर्थाधिकार है। वेदक नामक सातवां अर्थाधिकार है। उपयोग नामका आठवां अर्थाधिकार है। चतुःस्थान नामका नौवां अर्थाधिकार है। व्यंजन नामका दसवां अर्थाधिकार है। सम्यक्त्व नामका ग्यारहवां अर्थाधिकार है। देशविरति नामका बारहवां अर्थाधिकार है। संयम नामका तेरहवां अर्याधिकार है। चारित्रमोहकी उपशामना नामका चौदहवां अर्थाधिकार है और चारित्रमोहकी क्षपणा नामका पन्द्रहवां अर्थाधिकार है। गाथासूत्रमें 'दसणचरित्तमोहे' ऐसा कहने पर पहले कहे गये समस्त पन्द्रह ही अधिकार दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयके विषयमें होते हैं ऐसा तात्पर्य समझना चाहिये। अद्धापरिमाणनिर्देश स्वतंत्र अधिकार नहीं है, क्योंकि वह समस्त अर्थाधिकारोंमें अनुगत है। इसप्रकार तीसरे प्रकारसे पन्द्रह अर्थाधिकारोंकी प्ररूपणा की। इसीप्रकार चतुर्थ पंचमादि प्रकारोंसे पन्द्रह अर्थाधिकारोंका विचार कर के कथन कर लेना चाहिये।
विशेषार्थ-'पेजदोसविहत्ती' इत्यादि दो गाथाओंद्वारा इस कषायप्राभृतमें कहे गये पन्द्रह अर्थाधिकारोंका निर्देश किया है और इस समूचे कषायप्राभृतमें कितनी गाथाएं आई हैं तथा उनमेंसे कितनी गाथाएं किस अधिकारमें हैं इसकी सूचना इन दो गाथाओंकी वृत्तिरूपसे कही गई 'गाहासदे असीदे' इत्यादि गाथाओंद्वारा दी है। वहाँ लिखा है कि कषायप्राभृतके समस्त अधिकारोंका १८० गाथाओंमें वर्णन किया गया है और प्रारंभके पांच अधिकारोंमें तीन गाथाएं, वेदक नामक छठे अधिकार में चार गाथाएं, उपयोग नामक सातवें अधिकारमें सात गाथाएं, चतुस्थान नामक आठवें अधिकारमें सोलह गाथाएं, व्यंजन नामक नौवें अधिकारमें पांच गाथाएं, दर्शनमोहकी उपशामना नामक दसवें अधिकारमें पन्द्रह गाथाएं, दर्शनमोहकी क्षपणा नामक ग्यारहवें अधिकार में पांच गाथाएं, संयमासंयमलब्धि नामक बारहवें और चरित्रलब्धि नामक तेरहवें इसप्रकार इन दो अधिकारोंमें एक गाथा,
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