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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती ? ११७६. त्रिविधं वा द्रव्यम्, भव्याभव्यानुभयभेदेन । संसार्यसंसारिभेदेन जीवद्रव्यं द्विविधम् , अजीवद्रव्यं पुद्गलापुद्गलभेदेन द्विविधम्, एवं चतुर्विधं वा द्रव्यम् । जीवद्रव्यं त्रिविधं भव्याभव्यानुभयभेदेन, अजीवद्रव्यं द्विविधं मृर्तामृर्तभेदेन, एवं पंचविधं वा द्रव्यम् । जीव-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदेन षविध वा । जीवाजीवास्रव-संवरनिर्जरा-बन्ध-मोक्षभेदेन सप्तविधं वा । जीवाजीव-कर्मास्त्रव-संवर-निर्जरा-बन्ध-मोक्षभेदेनाष्टविधं वा। जीवाजीव-पुण्य-पापास्रव-संवर-निर्जर-बन्ध-मोक्षभेदेन नवविधं वा । एक-द्वित्रि-चतुः-पंचेन्द्रिय-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदेन दशविधं वा । पृथिव्यप्तेजो-चायुवनस्पति-त्रस-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशभेदेनैकादशविधं वापृथिव्यप्तेजो-वायु-वनस्पतिसमनस्कामनस्कत्रस-पुद्गल-धर्माधर्मकालाकाशभेदेन द्वादशविधं वा । जीवद्रव्यं त्रिविधं
६१७६. अथवा भव्य, अभव्य और अनुभयके भेदसे द्रव्य तीन प्रकारका है। अथवा संसारी और मुक्तके भेदसे जीव द्रव्य दो प्रकारका है। तथा पुद्गल और अपुद्गलके भेदसे अजीव द्रव्य दो प्रकारका है इसप्रकार द्रव्य चार प्रकारका भी है। अथवा, भव्य, अभव्य और अनुभयके भेदसे जीव द्रव्य तीन प्रकारका है तथा मूर्त और अमूर्तके भेदसे अजीव द्रव्य दो प्रकारका है, इसप्रकार द्रव्य पांच प्रकारका भी है । अथवा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे द्रव्य छह प्रकारका भी है। अथवा, जीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्षके भेदसे द्रव्य सात प्रकारका भी है। अथवा, जीव, अजीव, कर्म, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्षके भेदसे द्रव्य आठ प्रकारका भी है । अथवा जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्षके भेदसे द्रव्य नौ प्रकारका भी है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे द्रव्य दस प्रकारका भी है । पृथिवीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे द्रव्य ग्यारह प्रकारका भी है। अथवा पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, सैनी त्रस, असैनी त्रस, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाशके भेदसे द्रव्य बारह प्रकारका भी है। अथवा भव्य, अभव्य और अनुभयके भेदसे जीव द्रव्य तीन प्रकारका है। और पुद्गल द्रव्य छह प्रकारका है
(१) "अथवा सर्व वस्तु त्रिविधं द्रव्यगुणपर्यायः । चतुर्विधं वा बद्धमुक्तबन्धमोक्षकारणः । सर्व वस्तु पंचविध वा औदयिकौपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिकभेदैः । सर्वं वस्तु षडविध वा जीवपुदगलधर्माधर्मकालाकाशभेदैः । सर्व वस्तु सप्तविधं वा, बद्धमुक्तजीवपुद्गलधर्माधर्मकालाकाशभेदैः । सर्व वस्त्वष्टविधं वा भव्याभव्यमुक्तजीवपुद्गलधर्माधर्मकालाकाशभेदैः । सर्व वस्तु नवविधं वा जीवाजीवपुण्यपापास्रवसंवरनिर्जरबन्धमोक्षभेदैः । सर्व वस्तु दशविधं वा एकद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियजीवपुद्गलधर्माधर्मकालाकाशभेदैः । सर्वं वस्त्वेकादशविधं वा पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसजीवपुद्गलधर्माधर्मकालाकाशभेदैः।"-ध० आ० ५० ५४२-५४३। गो. जीव० जी० गा० ३५६ ।
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