Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा० १३-१४ ] णयपरूवणं
२०६ कर्मभावमनापन्नस्य प्रतिषेधस्यालम्बनार्थत्वविरोधात् । न विषयीकृतविधिप्रतिषेधात्मकवस्त्ववगमनं नयः; तस्यानेकान्तरूपस्य प्रमाणत्वात् । न च नयोऽनेकान्तः;
"नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः ।
अविभ्राड्भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकौ ॥८०॥' इत्यनया कारिकया सह विरोधात् ।
६१७४. “प्रमाणनयैर्वस्त्वधिगमः ।।८१॥” इति तत्त्वार्थसूत्रान्नयोऽपि प्रमाणमिति चेत् न प्रमाणादिव नयवाक्याद्वस्त्ववगममवलोक्य 'प्रमाणनयैर्वस्त्वधिगमः' इति प्रतिपादिविषय नहीं हो सकता और प्रमाण ज्ञानका विषय न होनेसे उसे उसका आलम्बनभूत अर्थ माननमें विरोध आता है।
विशेषार्थ-प्रमाण ज्ञान समग्र वस्तुको विषय करता है और वस्तु विधिप्रतिषेधात्मक है । अर्थात् वस्तु न केवल विधिरूप है ओर न केवल प्रतिषेधरूप। अतएव केवल विधिको विषय करनेवाला और केवल प्रतिषेधको विषय करनेवाला ज्ञान प्रमाण नहीं हो सकता, क्योंकि विषयके अभावमें विषयीका सद्भाव माननेमें विरोध आता है।
उसीप्रकार विधिप्रतिषेधात्मक वस्तुको विषय करनेवाला ज्ञान भी नय नहीं है, क्योंकि विधिप्रतिषेधात्मक वस्तु अनेकान्तरूप होती है, इसलिये वह प्रमाणका विषय है, नयका नहीं । दूसरे, नय अनेकान्तरूप नहीं है। फिर भी यदि उसे अनेकान्तरूप माना जाय तो
"नैगमादि नयोंके और उनकी शाखा उपशाखारूप उपनयोंके विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायोंका कथंचित् तादात्म्यरूप जो समुदाय है उसे द्रव्य कहते हैं। वह द्रव्य कथंचित् एकरूप और कथंचित् अनेकरूप है ॥८॥" इस कारिकाके साथ विरोध प्राप्त होता है। अर्थात् उक्त कारिकामें नयों और उपनयोंको एकान्तरूप अर्थात् एकान्तको विषय करनेवाला बतलाया है अतः नयको अनेकान्तरूप अर्थात् अनेकान्तको विषय करनेगला माननेमें विरोध आता है।
६१७४.शंका-'प्रमाणनयैर्वस्त्वधिगमः' अर्थात् "प्रमाण और नयसे जीवादि पदार्थोंका ज्ञान होता है ॥८१॥” तत्त्वार्थसूत्रके इस वचनके अनुसार नय भी प्रमाण है।।
__ समाधान-नहीं, क्योंकि जिसप्रकार प्रमाणसे वस्तुका बोध होता है उसीप्रकार नयवाक्यसे भी वस्तुका ज्ञान होता है, यह देखकर तत्त्वार्थसूत्र में 'प्रमाणनयैर्वस्त्वधिगमः' इसप्रकार प्रतिपादन किया है।
(१)-स्यावलम्ब-अ०, स० । (२) आप्तमी० श्लो० १०७ । (३) "प्रमाणनयैरधिगमः"-तत्त्वार्थसू० ११६ । “प्रमाणनयर्वस्त्वधिगम इत्यनेन सूत्रेणापि नेदं व्याख्यानं विघटते । कुतः ? यतः प्रमाणनयाभ्यामुत्पन्नवाक्येन यावदप्यपचारतः प्रमाणनयौ ताभ्यामत्पन्नबोधौ विधिप्रतिषेधात्मकवस्तुविषयत्वात् प्रमाणतामादधानावपि कार्ये कारणोपचारत: प्रमाणनयावित्यस्मिन् सूत्रे परिगृहीती नयवाक्यादुत्पन्नबोधः प्रमाणमेव न नय इत्येतस्य ज्ञापनार्थम, ताभ्यां वस्त्वधिगम इति भण्यते।"-ध० आ०१० ५४२।
२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org