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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती १ करणम् । कुदो णव्वदे ? अवसाणे 'इदि' सद्दवलंभादो। सो च सम्मत्तसद्दो कारणे कज्जुवयारेण दंसणमोहक्खवणुवसामणकिरियासु वहमाणो घेत्तव्यो। तत्थ ईसणमोहणीयस्स उवसामणा णाम दसमो अत्थाहियारो। कुदो णव्वदे ? जइवसहहविददसअंकादो १० । दंसणमोहणीयस्स खवणा णाम एकारसमो अत्थाहियारो । कुदो णव्वदे ? तेण हविदएकारसंकादो ११ ।
* देसविरदी च १२ ।
६१६०. देसविरयी णाम बारहमो अत्थाहियारो। कुदो णव्वदे ? जइवसहढविदबारहंकादो १२। * 'संजमे उवसामणा च खवणा च' चरित्तमोहणीयस्स उवसामणा
च १३, खवणा च १४।।
समाधान-उसके अन्तमें स्थित इति शब्दसे जाना जाता है कि चूर्णिसूत्रमें स्थित स्वरूपवाची सम्यक्त्वपद गाथासूत्र में स्थित सम्यक्त्व शब्दका अनुकरणमात्र है।
दर्शनमोहनीयकी उपशामना और दर्शनमोहनीयकी क्षपणा ये कारण हैं और सम्यक्त्व उनका, कार्य है। अतः यहाँ कारणमें कार्यका उपचार करके 'सम्यक्त्व' शब्दसे दर्शनमोहनीयकी क्षपणा और दर्शनमोहनीयकी उपशामनारूप क्रियाका ग्रहण करना चाहिये। उनमेंसे दर्शनमोहनीयकी उपशामना नामका दसवां अर्थाधिकार है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-यतिवृषभ आचार्यने 'दसणमोहणीयस्स उवसामणा च' इस पदके आगे दसका अंक स्थापित किया है, इससे जाना जाता है कि दर्शनमोहनीयकी उपशामना नामका दसवाँ अर्थाधिकार है।
दर्शनमोहनीयकी क्षपणा नामका ग्यारहवाँ अर्थाधिकार है। शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-यतिवृषभ आचार्यने 'दसणमोहणीयस्स खवणा च' इसके आगे ग्यारहका अंक रखा है, इससे जाना जाता है कि दर्शनमोहनीयकी क्षपणा ग्यारहवाँ अर्थाधिकार है।
* देशविरति नामका बारहवाँ अर्थाधिकार है । ६ १६०. देशविरति यह बारहवाँ अर्थाधिकार है। शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-यतिवृषभ आचार्यने 'देसविरदी च' इस पदके अन्तमें बारहका अंक स्थापित किया है, इससे जाना जाता है कि देशविरति नामका बारहवाँ अर्थाधिकार है।
* संयमविषयक उपशामना और क्षपणा अर्थात् चारित्रमोहनीयकी उपशामना यह तेरहवाँ अर्थाधिकार है १३, और उसीकी क्षपणा यह चौदहवाँ अर्थाधिकार है १४ ।
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