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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पेज्जदोसविहत्ती १
भादो ३ | जो कम्मबंधो सो संकमो णाम । सो चउत्थो अत्थाहियारो । कुदो १ चुण्णिसुते चत्तारिअंकणिदेसादो ४ ।
* वेदए त्ति उदओ च ५ । उदीरणा च ६ ।
$ १५५. वेद ति एत्थ बे अत्थाहियारा । कुदो ? उदओ दुविहो, कम्मोदओ अकम्मोदओ चेदि । तत्थ ओकड्डणाए विणा पत्तोदयकम्मक्खंधी कम्मोदओ णाम । ओकट्टणवसेण पत्तोदयकम्मक्खंधो अकम्मोदओ णाम । एत्थ कम्मोदओ उदओ ि गहिदो । सो च पंचमो अत्थाहियारो । कुदो ! तत्थ पंचकुवलंभादो ५ । अकम्मोदओ उदीरणा णाम । सो छट्ठो अत्थाहियारो । कुदो : तत्थ छअंकदंसणादो ६ | 'वेदगे '
१
विशेषार्थ - मिथ्यात्व आदि कारणोंसे जो नूतन बन्ध होता है उसे यहाँ अकर्मबन्ध और संक्रमणको कर्मबन्ध कहा है । आगम में पुद्गलके जो तेईस भेद कहे हैं उनमें कार्मणवर्गणा नामक एकं स्वतन्त्र भेद भी है। वे कार्मणवर्गणाएं ही मिध्यात्व आदिके निमित्तसे आकृष्ट होकर कर्मरूप परिणत होती हैं । आत्मा के साथ इनका एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध होने के पहले इन्हें कर्मसंज्ञा नहीं प्राप्त हो सकती है । अतः नूतन बन्धको यहाँ अकर्मबन्ध कहा है । और बन्ध होनेके क्षणसे लेकर उन्हें कर्मसंज्ञा प्राप्त हो जाती है । अतः संक्रमणके द्वारा जो पुनः स्थिति आदि में परिवर्तन होकर उनका आत्मासे एक क्षेत्रावगाह सम्बन्ध होता है उसे कर्मबन्ध कहा है । इसप्रकार अकर्मबन्ध और कर्मबन्ध में भेद समझना चाहिये । शंका-बन्ध नामका तीसरा अधिकार है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- 'बंधो' इस पद के अन्तमें तीनका अंक पाया जाता है इससे प्रतीत होता है कि बन्ध नामका तीसरा अर्थाधिकार है ।
ऊपर जो कर्मबन्ध कह आये हैं उसीका सूत्रमें संक्रम पदके द्वारा ग्रहण किया है । वह चौथा अर्थधिकार है, क्योंकि चूर्णिसूत्रमें 'संकमो' पदके आगे चारका अंक पाया जाता है ।
* गाथामें आये हुए वेदक इस पदसे उदय नामका पाचवां अर्थाधिकार लिया है ५ । तथा उदीरणा नामका छठा अर्थाधिकार लिया है ६ ।
$ १५५. 'वेद' इस पदसे यहां पर दो अर्थाधिकार लिये गये हैं, क्योंकि उदय दो प्रकारका है - कर्मोदय और अकर्मोदय । उनमें अपकर्षणा के बिना जो कर्मस्कन्ध उदयरूप अवस्थाको प्राप्त होते हैं वह कर्मोदय है । तथा अपकर्षणके द्वारा जो कर्मस्कन्ध उदयरूप अवस्थाको प्राप्त होते हैं वह अकर्मोदय है । यहाँ उदय पदसे कर्मोदयका ग्रहण किया है । वह पाँचवाँ अर्थाधिकार है, क्योंकि 'उदओ' इस पदके आगे पाँचका अंक पाया जाता है । उदीरणा पदसे अकर्मोदयका ग्रहण किया है । यह छठा अर्थाधिकार है, क्योंकि 'उदीरणा' इस पद के आगे छहका अंक देखा जाता है । 'वेदक' यह पद भी यहाँ कर्तृनिर्देशरूप नहीं
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