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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेजदोसविहत्ती ? ६१४६. संपहि एवं गुणहरभडारयस्स उवएसेण पण्णारस अत्थाहियारे परूविय जइवसहाइरिय उवएसेण पण्णारस अत्थाहियारे वत्तइस्सामो।
___ * अत्थाहियारो पण्णारसविहो । तथा १२ संबन्धगाथाएं, अद्धापरिमाणका निर्देश करते हुए कही गई ६ गाथाएं और प्रकृतिसंक्रमका आश्रय लेकर कही गईं ३५ वृत्तिगाथाएं इसप्रकार कुल २३३ गाथाएं पाई जाती हैं। इनमेंसे १८० गाथाएं स्वयं गुणधर भट्टारकके द्वारा रची गईं हैं। शेष ५३ गाथाओंके कर्ताके संबंधमें मालूम होता है कि वीरसेन स्वामीके समय दो परंपराएं पाई जाती थीं। एक परंपराका कहना था कि १८० गाथाओंको छोड़कर शेष त्रेपन गाथाएं नागहस्ति आचार्यकी बनाई हुई हैं । इस परंपराको मान लेनेसे 'गाहासदे असीदे' यह प्रतिज्ञा भी सार्थक हो जाती है। यदि ऐसा नहीं माना जाता है तो 'गाहासदे असीदे' इस प्रतिज्ञाकी कोई सार्थकता नहीं रह जाती है। यदि शेष ५३ गाथाएं भी गुणधर भट्टारककी बनाई हुई हैं तो — गाहासदे असीदे' के स्थान में २३३ गाथाओंकी प्रतिज्ञा करनी चाहिये थी । दूसरी परंपराका 'जो स्वयं वीरसेनस्वामीकी परंपरा है' इस विषयमें यह कहना है कि यद्यपि समस्त गाथाएं स्वयं गुणधर आचार्यकी बनाई हुई हैं फिर भी उनके 'गाहासदे असीदे' इस प्रतिज्ञाके करनेका कारण यह है कि इस कसायपाहुडके पन्द्रह अर्थाधिकारोंके प्रतिपाद्य विषयसे १८० गाथाएं ही संबन्ध रखती हैं शेष गाथाएं नहीं। शेष गाथाओंमें बारह तो संबन्ध गाथाएं हैं, जिनमें पन्द्रह अर्थाधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंकी सूचीमात्र दी गई है, छह अद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली गाथाएं हैं जिनमें पन्द्रहों अर्थाधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाले अद्धापरिमाणका निर्देश किया गया है। ३५ संक्रमवृत्ति गाथाएं हैं, जो केवल बन्धक अर्थाधिकारसे सम्बन्ध रखती हैं । यद्यपि पन्द्रह अर्थाधिकारों के भीतर किसी मी एक अर्थाधिकारसे सम्बन्ध रखनेवाली गाथाओंका या तो १८० गाथाओंमें समावेश हो जाना चाहिये या ‘गाहासदे असीदे ' इस प्रतिज्ञाको नहीं करना चाहिये था। पर 'तिण्णेदा गाहाओ पंचसु अत्थेसु णादव्वा' इस गाथांशके अनुसार प्रारंभके पांच अर्थाधिकारोंमें मूल तीन गाथाओंकी ही प्रतिज्ञाकी गई है, इसलिये इनका 'गाहासदे असीदे' इस प्रतिज्ञामें समावेश नहीं किया है। फिर भी अर्थापत्तिके बलसे यह समझ लेना चाहिये कि ये पैतीस गाथाएं उक्त पन्द्रह अर्थाधिकारोंमेंसे बन्धक अर्थाधिकारसे संबन्ध रखती हैं। इसप्रकार वीरसेन स्वामीके मतसे यह सुनिश्चित हो जाता है कि इस कसायपाहुडमें आई हुई २३३ मूल गाथाएं स्वयं गुणधर भट्टारककी बनाई हुई हैं।
६१४६. इस प्रकार गुणधर भट्टारकके उपदेशानुसार पन्द्रह अर्थाधिकारोंका प्ररूपण करके अब यतिवृषभ आचार्यके उपदेशानुसार पन्द्रह अर्थाधिकारोंको बतलाते हैं--
* अर्थाधिकारके पन्द्रह भेद हैं।
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