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गा० १३ ]
त्थाहियारणिसो
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गाहा पहुडि जाव 'पच्छिम आवलियाए समऊणाए ०' एस गाहेत्ति ताव दस भासगाहाओ १० | 'किटीदो किटिं पुण संकमह०' एदिस्से चउत्थीए मूलगाहाए दो भासगाहाओ । ताओ कदमाओ ? 'किट्टीदो किट्टी (हिं ) पुण०' एस गाहा पहुडि जाव 'मयूणा य पविद्या आवलिया ० ' एस गाहेत्ति ताव दो भासगाहाओ २ । ' चत्तारि य खवणाए' त्ति गयं । दोहि गाहाहि बुत्तासेसभासगाहीकाणमेसा संदिट्ठी बालजणपडिबोहण वेदव्वा ५ । ३-२-६ । ४ । ३ । ३ । १ । ४ । ३ । २ । ५-१-६ । ३ । ४ । २ । ४ । ४ । २ । ५ । १ । १ । १० । २ । एदासिं सव्वभासगाहाणं समासो छासीदी ८६ । एदासु गाहा पुव्विल्लअट्ठावीस गाहाओ पक्खित्ते चारित्त मोहणीय क्खवणाए णिबद्धचोइसुत्तरसयगाहाओ होंति ११४ । एत्थ पुव्विल्लचउसद्विगाहाओ पक्खित्ते अट्ठहत्तरिसय
ओ गाहाओ होंति । ताणं द्वावणा १७८ ।
S १४४. संपहि कसाय पाहुडस्स पण्णारसअत्थाहियार परूवणहं गुणहर भडारओ दो मुत्तगाहाओ पठदि
(१) पेज - दोसविहत्ती हिदि- अणुभागे च बंधगे चेय । वेदग-उवजोगे विय चउट्ठाण - वियंजणे चेय ॥ १३ ॥
गाथाएं हैं । 'किट्टीदो कट्टि पुण संकामइ० ' कृष्टियोंकी क्षपणासंबन्धी इस चौथी मूल गाथाकी दो भाष्यगाथाएं हैं। वे कौनसी हैं ? 'किट्टीदो किट्टि पुण०' इस गाथासे लेकर 'समयूणा य पविट्ठा आवलिया ०' इस गाथा तक दो भाष्यगाथाएँ हैं । इसप्रकार 'चत्तारि य खवणाए' इस गाथांशका व्याख्यान समाप्त हुआ । उपर्युक्त दो गाथाओंके द्वारा कही गई समस्त भाष्यगाथाओं की संख्या की यह संदृष्टि बालजनोंको समझानेके लिये इसप्रकार स्थापित करनी चाहिये - ५, ३, २, ६, ४, ३, ३, १, ४, ३, २, ५, १, ६, ३, ४, २, ४, ४, २, ५, १, १, १०, २ । इन समस्त भाष्यगाथाओं का जोड़ छियासी होता है । इन छियासी गाथाओं में चारित्रमोहकी क्षपणासंबन्धी पूर्वोक्त अट्ठाईस गाथाओंके मिला देने पर चारित्रमोहकी क्षपणा नामक अर्थाधिकारसे संबन्ध रखनेवाली कुल गाथाएं एकसौ चौदह होती हैं । इन एकसौ चौदह गाथाओं में पहले के १४ अधिकारसंबन्धी चौसठ गाथाओंके मिला देने पर कुल एकसौ अठहत्तर गाथाएं होती हैं। गिनतीमें उनकी स्थापना १७८ होती है ।
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$ १४४. अब कषायप्राभृतके पन्द्रह अर्थाधिकारोंका प्ररूपण करनेके लिये गुणधर भट्टारक दो सूत्रगाथाएं कहते हैं-
दर्शनमोह और चारित्रमोहके विषय में पेज्ज- दोषविभक्ति, स्थितिविभक्ति, अनु(१) सूत्रगाथाङ्कः २२८ । (२) सूत्रगाथाङ्कः २२९ । (३) सूत्रगाथाङ्क: २३० । ( ४ ) सूत्रगाथाङ्कः २३१ ।
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