Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ८ ]
अथाहियारगाहासूई
१६७
हियारविसेसाणं ध ध अहियारभावो होदि ति सिस्सम्मि समुप्पण्णविवरीय बुद्धीए गिराकरण कदो । एदेहि अट्ठाबीसगाहाहि एक्को चेव अत्थाहियारो परुविदो ि तेण घेत्तव्वं, अण्णहा पण्णारस अत्थाहियारे मोत्तूण बहूणमत्थाहियाराणं पसंगादो | खवणअत्थाहियारे अण्णाओ विगाहाओ अत्थि ताओ मोत्तूण किमिदि चारित्तमोहणीक्खवणार अट्ठाबीसं चेव गाहाओ त्ति परूविदं ? ण; एदाहि गाहाहि परुविदत्थे मोत्तूण तासिं सेसगाहाणं पुधभूदअत्थाणुवलंभादो, तेण चारित्तमोहणीय क्खवणाए अट्ठाबीसं चैव गाहाओ होंति २८ । संकामणपट्ठवए चत्तारि ४, संकामए चत्तारि ४, ओट्टणा [ ए ] तिणि ३, किट्टीस एकारस ११, किट्टीणं खवणाए चत्तारि ४, खीणमोहे एका १, संगहणीए एक्का १, एदेसिं गाहाणं समासो जेण अट्ठावीसं चैव होदि तेण होता है, इसप्रकार शिष्य में उत्पन्न हुई विपरीत बुद्धिके निराकरण करनेके लिये चारित्रमोहकी क्षपण में आई हुई कुल गाथाओंका जोड़ अट्ठाईस है ऐसा कहा है । अर्थात् चारित्रमोहकी क्षपणा नामक अधिकारमें अनेक अवान्तर अर्थाधिकार हैं । यदि उस अधिकारसे सम्बन्ध रखनेवाली कुल गाथाओंका जोड़ न बतलाया जाता तो शिष्यको यह मतिविभ्रम होनेकी संभावना है कि प्रत्येक अवान्तर अर्थाधिकार एक एक स्वतन्त्र अधिकार है और उससे सम्बन्ध रखनेवाली गाथाएँ उस अधिकारकी गाथाएं हैं । अतः इस मतिविभ्रमको दूर करनेके लिये चारित्रमोहक्षपणा नामक अर्थाधिकारसे सम्बन्ध रखनेवालीं गाथाओं के परिमाणका निर्देश किया गया है । 'अट्ठावीसं समासेण' इस पदसे इन अट्ठाईस गाथाओंके द्वारा एक ही अर्थाधिकार कहा गया है, इसप्रकारका अभिप्राय ग्रहण करना चाहिये । यदि यह अभिप्राय न लिया जाय तो कषायप्राभृतमें पन्द्रह अर्थाधिकारोंके सिवाय और भी बहुतसे अर्थाधिकारों की प्राप्तिका प्रसंग प्राप्त होता है ।
शंका- इस चारित्रमोहकी क्षपणा नामक अर्थाधिकार में इन अट्ठाईस गाथाओंके अतिरिक्त और भी बहुतसी गाथाएं आई हैं। उन सबको छोड़कर 'चारित्रमोहकी क्षपणा नामक अर्थाधिकारमें अट्ठाईस ही गाथाएं हैं' ऐसा किसलिये कहा है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि इन अट्ठाईस गाथाओंके द्वारा प्ररूपण किये गये अर्थको छोड़ कर उन शेष गाथाओंका अन्य कोई स्वतंत्र अर्थ नहीं पाया जाता है । अर्थात् वे शेष गाथाएं उसी अर्थ का प्ररूपण करती हैं जो कि अट्ठाईस गाथाओंके द्वारा कहा गया है । इसलिये चारित्रमोहनीयकी क्षपणा नामक अधिकार में अट्ठाईस ही गाथाएं हैं ऐसा कहा है ।
चारित्रमोहकी क्षपणाके प्रारंभ करनेवालेके कथनमें चार, संक्रामकके कथनमें चार, अपवर्तनाके कथनमें तीन, कृष्टियोंके कथनमें ग्यारह, कृष्टियोंकी क्षपणाके कथनमें चार, क्षीणमोहके कथनमें एक और संग्रहणीके कथन में एक, इसप्रकार इन गाथाओंका जोड़ जिस कारणसे अट्ठाईस ही होता है इसलिये पहले जो कहा गया है वह ठीक ही कहा गया है।
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