________________
गा० ७ ]
अत्याहियारगाहासूई १३०. एदिस्से गाहाए अत्थो वुच्चदे । तं जहा, चारित्तमोहणीयक्खवणाए जो पट्ठावओ पारंभओ आढवओ तत्थ चत्तारि गाहाओ होंति । ताओ कदमाओ ? 'संकामयपट्टवयस्स परिणामो केरिसो हवे.' एस गाहा प्पहुडि जाव "किंडिदियाणि कम्माणि' एस गाहेत्ति ताव चत्तारि गाहाओ ४। तहा 'संकामए वि चत्तारि' त्ति भणिदे चारित्तमोहक्खवणओ अंतरकरणे कदे संकामओ णाम होदि । तत्थ संकामए पडिबद्धाओ चत्तारि गाहाओ। ताओ कदमाओ ? 'संकामण(ग)पट्ठव०' एस गाहा पहुडि जावबंधो व संकमो वा उदयो वा०' एस गाहे त्ति ताव चत्तारि गाहाओ होंति ४। 'ओवट्टणाए तिणि दु' खवणाए चारित्तमोहओवट्टणाए तिण्णि गाहाओ। ताओ कदमाओ ? 'किं अंतरं करेंतो०' एस गाहा प्पहुडि जाव 'हिदिअणुभागे अंसे' एस गाहेत्ति ताव तिण्णि गाहाओ ३ । “एक्कारस होंति किट्टीए' चारित्तमोहक्खवणाए बारह संगहकिट्टीओ णाम होति । तासु किट्टीसु पडिबद्धाओ एकारस गाहाओ। ताओ कदमाओ? 'केवडिया किट्टीओ' एस गाहा प्पहुडि जाव 'किट्टीकयम्मि कम्मे के वीचारो दु मोहणीयस्स' एस गाहेत्ति ताव एकारस गाहाओ होंति ११ । हैं। चारित्रमोहकी अपवर्तनामें तीन गाथाएँ आई हैं। तथा चारित्रमोहकी क्षपणामें जो बारह कृष्टियां होती हैं उनमें ग्यारह गाथाएँ आई हैं ॥७॥
६१३०. अब इस गाथाका अर्थ कहते हैं। वह इसप्रकार है-चरित्रमोहकी क्षपणाका जो प्रस्थापक अर्थात् प्रारंभक या आरंभ करनेवाला है उसके वर्णनसे सम्बन्ध रखनेवाली चार गाथाएँ हैं। वे कौनसी हैं ? 'संकामयपट्ठवगस्स परिणामो केरिसो हवे०' इस गाथासे लेकर 'किंटिदियाणि कम्माणि०' इस गाथा तक चार गाथाएँ हैं। तथा 'संकामए वि चत्तारि' ऐसा कथन करनेका तात्पर्य यह है कि चारित्रमोहकी क्षपणा करनेवाला जीव नौवें गुणस्थानमें अन्तरकरण करने पर संक्रामक कहलाता है । इस संक्रामकके वर्णनसे सबन्ध रखनेवाली चार गाथाएँ हैं। वे कौनसी हैं ? 'संकामगपट्ठव०' इस गाथासे लेकर 'बंधो व संकमो वा उदयो वा०' इस गाथातक चार गाथाएँ हैं। क्षपकश्रेणी सम्बन्धी चारित्रमोहकी अपवर्तनाके वर्णनमें तीन गाथाएँ आई हैं। वे कौनसी हैं ? 'किं अंतरं करेंतो०' इस गाथासे लेकर 'ट्ठिदिअणुभागे अंसे०' इस गाथा तक तीन गाथाएँ हैं। चारित्रमोहकी क्षपणामें बारह संग्रहकृष्टियां होती हैं। उन बारह संग्रहकृष्टियोंके वर्णनसे संबन्ध रखनेवाली ग्यारह गाथाएँ हैं। वे कौनसी हैं ? 'केवडिया किट्टीओ०' इस गाथासे लेकर 'किट्टी कयम्मि कम्मे के वीचारो दु मोहणीयस्स ।' इस गाथा तक ग्यारह गाथाएं हैं।
(१) सूत्रगाथाङ्कः १२०। (२) सूत्रगाथाङ्कः १२३। (३)-वखवओ आ०, स० । (४) सूत्रगाथाङ्कः १२४। (५) सूत्रगाथाङ्कः १४७। (६) सूत्रगाथाङ्कः १५११ (७) सूत्रगाथाङ्कः १५७। (८) सूत्रगाथाङ्कः १६२। (6) सूत्रगाथाङ्क: २१३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org