Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गो०]
अत्थाहियारगाहासूई लद्धी य संजमासंजमस्स लड़ी तहा चरित्तस्स । दोसु वि एका गाहा अटेवुवसामणद्धम्मि ॥६॥
१२७. एदिस्से संबंधगाहाए अत्थो वुच्चदे । तं जहा, संजमासंजमलद्धी णाम बारसमो अत्याहियारो १२ । चरित्तलद्धी तेरसमो अत्थाहियारो १३ । एदेसु दोसु वि अत्थाहियारेसु एक्का गाहा णिबद्धा ११ सा कदमा ? 'लद्धी च संजमासंजमस्स०' एसा एक्का चेव । एत्थ गाहासमासो छप्पण्ण ५६।।
१२८. जदि पडिबद्धगाहाभेदेण अत्थाहियारभेदो होदि तो एदेहि दोहि मि एक्केण अत्थाहियारेण होदव्वं एगगाहापडिबद्धत्तादो त्तिः सच्चमेवं चेवेदं; जदि दोसु वि अत्थाहियारेसु एगगाहा पडिबद्धेत्ति गुणहरभडारओ ण भणंतो । भणिदं च तेण, तदो जाणिज्जदि पडिबद्धगोहाभेदाभावे वि दो वि पुध पुध अहियारा होति त्ति । जदि पडिबद्धगाहाभेदेण अत्थाहियारभेदो होदि तो चरित्तमोहक्खवणाए बहुएहि अत्थाहि
___ संयमासंयमकी लब्धि बारहवाँ अर्थाधिकार है तथा चारित्रकी लब्धि तेरहवाँ अर्थाधिकार है। इन दोनों ही अधिकारों में एक गाथा आई है। तथा चारित्रमोहकी उपशामना नामके अथॉधिकारमें आठ गाथाएँ आई हैं ॥ ६ ॥
१२७. अब इस संबन्धगाथाका अर्थ कहते हैं। वह इसप्रकार है-संयमासंयमलब्धि नामका बारहवां अर्थाधिकार है और चारित्रलब्धि नामका तेरहवाँ अर्थाधिकार है। इन दोनों ही अर्थाधिकारों में एक गाथा निबद्ध है। वह कौनसी है ? 'लद्धी य संजमासंजमस्स०' यह एक ही है। इन तेरह अर्थाधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंका जोड़ छप्पन होता है ।
६ १२८. शंका-यदि अर्थाधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंके भेदसे अर्थाधिकारोंमें भेद होता है तो संयमासंयमलब्धि और चारित्रलब्धि इन दोनोंको मिलाकर एक ही अर्थाधिकार होना चाहिये, क्योंकि ये दोनों एक गाथासे प्रतिबद्ध हैं। अर्थात् इन दोनोंमें एक ही गाथा पाई जाती है।
समाधान-इन दोनों अधिकारों में एक गाथा प्रतिबद्ध है इसप्रकार यदि गुणधर भट्टारक नहीं कहते तो उपर्युक्त कहना सत्य होता, परन्तु गुणधर भट्टारकने उपर्युक्त दो अधिकारोंमें एक गाथा प्रतिबद्ध है ऐसा कहा है। इससे जाना जाता है कि उपर्युक्त अधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंमें भेदके नहीं होने पर भी, अर्थात् दोनों अधिकारोंमें एक गाथाके रहते हुए भी, दोनों ही पृथक् पृथक् अधिकार हैं।
शंका-यदि अधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंके भेदसे अधिकारों में भेद होता है तो चारित्रमोहकी क्षपणामें बहुत अधिकार होने चाहिये, क्योंकि वहाँ पर संक्रामण,
(१) सूत्रगाथाङ्कः १११ । (२)-गाहाभावे भेदाभावे अ० ।
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