Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५ ]
अत्था हियारगाहासू
१६१
गाहेति ताव पण्णारस गाहाओ १५। एत्थ गाहासमासो पंचास ५० | दंसणमोहक्खवणा णाम एक्कारसमो अत्थाहियारो ११ । तत्थ पंच सुत्तगाहाओ । ताओ कदमाओ ? 'संमोहवणा [व] ओ कम्म० ' एस गाहा प्पहुडि जाव 'संखेज्जां च मणुस्सा ० (सेसु० )' एस गाहेति ताव पंच गाहाओ ५ । एत्थ गाहासमासो पंचपंचास ५५ ।
१२६. केवि आइरिया दंसणमोहणीयस्स उवसामक्खवणाहि बेहि मि एक्को चेव अत्थाहियारो होदित भणति 'दंसणचरितमोहे अद्धापरिमाणणिद्देसेण सह सोलस अत्याहियारा होंति' त्ति भएण; तण्ण घडदे; पण्णारसअत्थाहियारणिबद्ध असीदिसदगाहासु गुणहरवयणविणिग्गयासु दंसणचरित्तमोह अद्धापरिमाणपडिबद्ध गाहाणमणुवलंभादो । तत्थ पँडिबद्धगाहाणमभावो दंसणचरित्त मोह अद्धा परिमाणणिदेसो पण्णारसअत्थाहियारेसु होदित्ति कथं जाणावेदि ? ' पण्णरसधाविहत्तअत्थाहियारेसु असीदिसदगाहाओ अवहिदाओ' ति भणिदविदियसुत्तगाहादो जाणावेदि । 'आवलियमणायारे० ' एस गार्हो - इस गाथा तक पन्द्रह गाथाएं हैं। यहां तक दस अधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली कुल गाथाओं का जोड़ पचास होता है । दर्शनमोहक्षपणा नामका ग्यारहवां अर्थाधिकार है । इस अर्थाधिकार में पांच सूत्रगाथाएं हैं। वे कौन सी हैं ? 'दंसणमोहक्खवणापट्ठवओ कम्म ०' इस गाथासे लेकर 'संखेज्जा च मणुस्सेसु०' इस गाथा तक पांच गाथाएं हैं। यहां तक ग्यारह अधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली कुल गाथाओंका जोड़ पचपन होता है ।
$१२६. कितने ही आचार्य, 'दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयसंबन्धी अद्धापरिमाणके निर्देशके साथ सोलह अर्थाधिकार हो जाते हैं । अर्थात् यदि इन दोनों अधिकारोंको स्वतंत्र रखा जाता है तो पन्द्रह अधिकार तो इन सहित हो जाते हैं, और इनके अद्धापरिमाणका निर्देश जिस अधिकारमें किया गया है, उसके मिलानेसे सोलह अधिकार हो जाते हैं' इस भय से 'दर्शन मोहनीयकी उपशमना और दर्शनमोहनीयकी क्षपणा इन दोनोंको मिलाकर एक ही अर्थाधिकार होता है' ऐसा कहते हैं । परन्तु उनका ऐसा कहना घटित नहीं होता है, क्योंकि गुणधर आचार्य के मुखसे निकली हुईं पन्द्रह अर्थाधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली एकसौ अस्सी गाथाओं में दर्शनमोह और चारित्रमोहके अद्धापरिमाणसे संबन्ध रखनेवालीं गाथाएं नहीं पाईं जाती हैं । अतएव दर्शनमोहनीयकी उपशमना और दर्शनमोहनीयकी क्षपणा इन दोनोंको स्वतन्त्र अधिकार मानकर ही पन्द्रह अर्थाधिकार समझना चाहिये । शंका- दर्शनमोह और चारित्रमोहसंबन्धी अद्धापरिमाणका निर्देश पन्द्रह अर्थाधिकारोंमें नहीं है तथा उनमें उससे संबद्ध छह गाथाएँ भी नहीं हैं यह कैसे जाना जाता है ? समाधान - पन्द्रह प्रकारसे ही विभक्त अर्थाधिकारों में एकसौ अस्सी गाथाएं ही अवस्थित हैं इस आशयवाली पूर्वोक्त दूसरी सूत्रगाथासे जाना जाता है कि दर्शनमोह और चारित्रमोहसंबन्धी अद्धापरिमाण तथा छह गाथाएँ पन्द्रह अर्थाधिकारोंमें नहीं आती हैं ।
(१) सूत्रगाथा ङ्कः १०६ । ( २ ) सूत्रगाथाङ्कः ११०। (३) परिब- अ० आ० । (४) सूत्र गाथाङ्क: १५ । २१
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